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________________ ३५८ ] [ तित्थोगाली पइन्नय राजगृह नगर के गुणशील नामक उद्यान में भगवान महावीर ने इन्द्रभूति आदि श्रमणों के समक्ष आगामी उत्सर्पिणी काल के षष्ठ प्रारक का यह उपयुक्त वर्णन किया ।११८६। ओसप्पिणि छब्भेया, एवं उस्सप्पिणी वि छर्भया । एवं बारस अरगा, निद्दिट्ठा वद्धमाणेणं ।११९०! (अवसर्पिणी षट भेदा, एवमुत्सर्पिण्यपि षड्भेदाः । एवं द्वादशारका, निर्दिष्टा वद्ध मानेन ।) जिस प्रकार अवपिणी काल के छः भेद हैं उसी प्रकार उत्सपिणी काल के भी छः भेद हैं । इस प्रकार भगवान् वर्द्धमान ने काल. चक्र के १२ आरक बताये हैं ११६०। एवं तित्थोगालिं, जिणवरवीरेण भासियमुदारं । रायगिहे गुणसिलए, परमरहस्सं सुयमहग्धं ।११९१। (एवं तीर्थोद्गालिके, जिनवरवीरेण भाषितमुदारम् । राजगृहे गुणशिलके, परमरहस्यं श्रुतं महाय॑म् ।) ___ इस प्रकार भगवान महावीर ने राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में भाषित परम रहस्यपूर्ण, उदार एवं बहुमूल्य श्रे त तीर्थप्रोगाली" का ।११६ । मिच्छत्व मोहियाणं, सद्धम परंमुहाण जीवाणं । सियवायवाहिराणं, तहकुस्सुइ पुण्णकण्णाणं ।११९२। (मिथ्यात्वमोहितानां, सद्धर्मपराङ मुखानां जीवानां । स्याद्वादबहिराणां, तथा कुश्रुतिपूर्ण कर्णानाम् ।) -मिथ्यात्व से मोहित, सद्धर्म से विमुख, स्याद्वाद को न मानने वाले तथा जिनके कान कुशास्त्रों (मिथ्या श्र तों) के श्रवण से भरे पड़े हैं, उन जोवों को।११६२। परपरिवायरयाणं, कुलगणसंघस्सनिव्वुइ रयाणं । चारित दुब्बलाणं, मा हु कहेज्जाहि जीवाणं ।११९३।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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