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तित्योगालो पइन्नय
(सुप्रतिष्ठित चरणास्तु, नित्यं पीनोन्नतैः स्तनैः । शशि सोम दर्शनास्तु, तेषां मनुजानां महिलाः ।)
सुघड़ सुन्दर चरणों वाली तथा सदा (मृत्यु पर्यन्त) पीन एवं उन्नत पयोधरों वाली, उन पुरुषों की स्त्रियां भी चन्द्रमा के समान अति सौम्य एवं सुन्दर होंगी।११८६। एवं परिवट्टमाणो, लोए चंदेव धवल पक्खम्मि । सुसमसुममा तइया. तिरियाण वि सव्व सोक्खाई ।११८७। (एवं परिवर्तमाने, लोके चन्द्रव धवलपक्ष। . . सुषमं सुषमायांतदा, तिर्यञ्चानामपि सर्व सौख्यानि ।)
उस समय सुःषम सुःषम काल में शुक्ल पक्ष के चन्द्र की तरह बढ़ते हुए सौख्यपूर्ण लोक में पशु-पक्षो आदि तिर्यञ्चों को भी सब प्रकार के सुख उपलब्ध होंगे ।११८७। *समं वासति मेहो, होति सुसरसाइं ओसहि फलाई ।
ओसहिबलेण आऊ, वड्ढइ मणुयाण तिरियाणं ।११८८। (समं वर्षति मेघः, भवन्ति सुसरसानि औषधि-फलानि । औषधि बलेन आयुः; वर्धते भनुजानां नियंचानाम् ।) .
उस समय मेघ समुचित वर्षा करेंगे, औषधियां, फल आदि समोचीन रूप से सरस होंगे। पूर्णतः सरस उन औषधियों (वनस्पतियों) के बल अर्थात् प्रभाव से मनुष्यों तथा तिर्यञ्चों को प्राय बढ़ेगो ११८८। उस्तप्पिणी इमीसे, छट्ठो अरगोउ वण्णिओ एसो । रायगिहे गुणसिलए. गोयमादीणा समणाणं ।११८९। (उत्सर्पिण्यामिमायां, षष्ठोऽऽरकन्तु वर्णित एषः । राजगृहे गणशिलके, गौतमादि श्रमणेभ्यः ।) * तारांकिता गाथा विचारणीया । भोगभूमिकाले समं वर्षति पर्जन्य, इत्येता. दृशो समुल्लेख: सम्पूर्ण जैनवाङमये न जायते दृष्टिगोचर । एतादृशमुल्लेखं तु केवलमस्यां गाथायामैव दृश्यते ।