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[ तित्थोगाली पइन्नय अल्लीण जुत्त सवणा, पीण सुमंसल पसत्थ सुकबोला। पंचमिचंद णिडाला, उडुवइ परिपुण्ण वरवयणा ।११८३। (आलीन युक्त श्रवणाः, पीन सुमांसल प्रशस्त. सुकपोलाः । पंचमीचन्द्रललाटा, उडुपति प्रतिपूर्ण वरवदनाः ।)
न तो चिपके हुए और न अधिक उभरे हुए अपितु उपयुक्त रूपेण उभरे हुए सुन्दर श्रवणों (कानों) वाले उभरे हुए मांसल एवं श्लाघनीय सुन्दर कपोलों वाले, शुक्ल पक्ष की पंचमी के चांद तुल्य ललाट बाल, पूर्णिमा के चन्द्र के समान मुख मण्डल वाले ॥११८३॥ छत्तु त्तमंग सोहा, घणनिचिय सुबद्धलक्खणो किण्णा। कूडागार सुसंठिय, पयाहिणावत्तवरसिरजा ।११८४। (छत्रोत्तमांग शोभाः, घन-निचित-सुबद्धलक्षणोत्कीर्णाः । कुटागार सुसंस्थित, प्रदक्षिणावर्त्तवरशिरजाः ।)
छत्र के समान सुशोभित शिर वाले, गिरिराज के उच्चतम शिखर पर संस्थित काल बादलों के समान घने तथा सँवरे हुए काल घ घराले बालों वाले ॥११८४॥ लक्खणगुणोववेया, माणुम्माण पडिपुण्ण सव्वंगा । पासाय दरिसणिज्जा, अभिरूवा चेव ते मणुया ।११८५॥ (लक्षण गुणोपपेताः, मानोन्मान प्रतिपूर्ण सर्वांगाः । प्रासाद वित्] दर्शनीया, अभिरूपाश्चैव ते मनुजाः ।)
___ सब प्रकार के शुभ लक्षणों एवं गुणो से युक्त, मान-उन्मान सहित परिपूर्ण अंगोंपांगों वाले प्रासाद के समान दर्शनीय उस सुःषम सुःषम प्रारक के मनुष्य अतीव सुन्दर होंगे ॥१५८५।। सुपइडिया चलणाउ, निच्चं पीणुण्णएहिं थणएहिं । ससि सोम दंसणाउ, ताणं मणुयाण महिलाओ ११८६।
* जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ती अष्टमी चन्देणोपमितं सुषम सुषमाया -मुत्पन्नानां मनुजानां
मुखारविन्दानि ।