________________
तिथ्योगालो पइन्नय ]
नयण मणर्कतरुवा, भोगुचम सव्वलक्खणधरा य । सव्वंग सुदरंगा, रतु प्पल पत्तकर चरणा ११७४। (नयनमनकान्तरूपाः भोगोत्तमसर्वलक्षणधराश्च । सर्वांग सुन्दराङ्गः, रक्तोत्पल पत्रकर चरणाः ।)
[३५३
आंखों और मन को अति प्रिय लगने वाले सुन्दर रूप वाले, भोगों के उपभोग योग्य सभी उत्तम लक्षणों को धारण करने वाले, अति सुन्दर अंग-प्रत्यंग वाल े रक्तकमल के पत्र के समान सुकोमल हाथ-पैर बालं – ११७४
,
नग-नगर-मगर - सागर, चक्कंकुम वज्ज पच्चक्ख जुत्ता । सुपट्ठियवरचलणा, उन्नयतणु तंब नक्खा य । ११७५ । (नग - नगर - मकर- सागर चक्रांकुश वज्र प्रत्यक्ष युक्ताः सुप्रतिष्ठित वर चरणा, उन्नत तनु ताम्रनखाश्च ।)
पर्वत नगर मकर, सागर चक्र अंकुश और वज्र के प्रत्यक्ष ( सुस्पष्ट) लांछनों (लक्षणों) से युक्त, सुघड़ -- सुगठित सुन्दर चरणों उन्नत शरीर और ताम्रवर्ण के नखों वाले ॥। ११७५ ।।
सुसिलिड गूढ गुफा, एणी - कुरुविंदवत्तवर जंघा | समुग्ग-निमग्गगढ जारण, गयसुसण सुजाय सरिसोरू । ११७६ । (सुश्लिष्ट - गूढगुल्फा, एणी + कुरु विन्दा वर्त्तवर जंघाः । समुद्ग निमग्न गूढ जानवः, गजश्वसन सुजात सदृशोरवः । )
अति सुन्दर एवं गूढ (अप्रकट) घुटनों, टखनों आदि के जोड़ वाले, एगी ? कुरुविन्द - कद लिस्थम्भ के समान सुगठित प्रवर्त ( ढाल - उतार) सुन्दर जंघाओं वाले, उभार रहित सुदृढ़ घटने वाल े, गजराज की सूँड के समान ऊपरी भाग में स्थूल और अधोभाग में उत्तरोत्तर प्रतनु ( पतली ) जंघाओं वाल े ।। ११७६॥
* तद्ग्रन्थी घुटिके गुल्फी, पुमान्पाष्णिस्तयोरधः ।। १२१७ । इत्यमरः । + गोकर्ण पृशतैणयं रोहिताश्चमरो मृगाः । १००८ । इत्यमरः । * वनस्पति विशेषः । ‘कुरुविन्दो मेघनामा, मुस्ता मुस्तकम स्त्रियाम् । इत्यमरः ।