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( एषा उपभोगविधिः, समासतः भवति पंचमे आरके | कोट्या कोट्यस्त्रीणिस्तु षष्ठ आरकं तु वक्ष्यामि ।)
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[ तित्थोगाली पइन्नय
तीन कोटा - कोटि सागरोपम की स्थिति वाले सुषमा नामक पंचम आरक में, जैसा कि संक्षेपतः बताया गया - इस प्रकार की उपभोग विधि होती है । अब मैं उत्सर्पिणी काल के छुट्ट े आारक के सम्बन्ध में कथन करूंगा । ११७० ।
सुसम सुसमाए कालो, चचारि हवंति कोडिकोडी । इय सागरोवमाणं, काल पमाणेण नायव्वो । ११७१ । (सुषम- सुषमायां कालः, चत्वारि भवन्ति कोटिकोट्यस्तु । एवं सागरोपमानां, कालप्रमाणेन ज्ञातव्यः )
सुषम- सुषम नामक ( उत्सर्पिणी के षष्ठम ) आरक काल प्रमाण से चार कोटाकोटि सागरोपम का होता है । ११७१ जह जह वह कालो, तह तह बढेति आउ दीहादी । उपभोगा य नराणं, तिरियाणं चेक रुक्खे | ११७२ | ( यथा यथा वर्धते कालस्तथा तथा वर्द्धन्ते आयुदीर्घतादि । उपभोगाश्च नराणां तिर्यञ्चानां चैव वृक्षेषु )
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ज्यों ज्यों समय आगे की ओर बढ़ता जाता है, त्यों त्यों मनुष्यों एवं तिर्यञ्चों की आयु, शरीर की ऊचाई तथा उन्हें कल्पवृक्षों से प्राप्त होने वाली भोग सामग्री की वृद्धि होती जाती है ११७२
सुसम सुसमाए मणयाणं, तिष्णेव गाउयाई उच्चतं । तिनि पलिओमाई, परमाउ तेसिं होड़ बोधव्वं । ११७३। (सुषम सुषमायां मनुजानां, तिस्त्र, एव गव्यूतयः उच्चत्वम् । त्रीण्येव पल्योपमानि परमायुस्तेषां भवति (इति) बोद्धव्यम् ।)
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सुःषम-सुःषम नामक आारक में मनुष्यों के शरीर की ऊंचाई तीन गव्यूति (कोस) और उत्कृष्ट आयु ३ पल्योपम होती है, यह जानना चाहिये | ११७३ ।