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________________ तिथ्योगाली पइन्नय ] [३५१ चित्तरसेसु य इट्ठा, नाणाविह साउ भोयण विहीओ। पत्था मंडवसरिसा, बोधव्या कप्परक्खेसु ।११६७। (चित्ररसेषु च इष्टा, नानाविध स्वादु भोजनविधयः । प्रस्था मण्डप सदृशाः, बोद्धव्या कल्पवृक्षेषु ।) चित्ररस नामक कल्पवृक्षों से अनेक प्रकार के प्रभीष्टस्वादु भोजन प्राप्त होते हैं। प्रस्था नामक कल्पवृक्ष मण्डप के समान होते हैं ।११६७। जह जह वट्टति कालो, तह तह वड्ति आउ दीहादी । उवभोगा य नराणं, तिरियाणं व रुक्खेसु ।११६८। (यथा यथा वर्द्ध ते कालस्तथा तथा वर्धन्ते आयुदीर्घतादि । उपभोगाश्च नराणां, तिर्यञ्चानां चैव वृक्षेष ।) . ज्यों ज्यों समय बीतता जाता है, त्यों त्यों आयु तथा शरीर की लम्बाई एवं मनुष्यों और तिर्यञ्चों को कल्पवृक्षों से प्राप्त होने वाली उपभोग्य सामग्री में उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहती है ।११६८। दो गाउय + गुम्बिद्धा ते, पुरिसा तया होंति महिलाउ । दोन्नि पलिओवमाई, परमाऊं तेसि बोधव्यम् ।११६९। (द्वौ गव्यूतौ उद्विद्धाः ते पुरुषास्तदा भवन्ति महिलास्तु । द्वे पल्योपमे, परमायुस्तेषां बोद्धव्या ।) उत्सपिणी के सुःषमा नामक उस पंचम प्रारक में पुरुषों एवं महिलाओं के शरीर की ऊचाई दो गाउ (कोस) और दो पल्योपम की आयु जाननी चाहिये । ११६६। एसा उवभोग विही, समासतो होइ पंचमे अरगे। कोडाकोडीनिण्णिउ, छ8 अरगं तु वोच्छामि ।११७०। + गाउय-गव्यूत । द्विधनुसहस्रप्रमाण क्षेत्र । प्रज्ञा० १ पद। चउहत्थं पुण धनुहं दुन्निसस्साइ गाउयं तेसि । प्रवचन ५४ द्वार । क्रोशद्वये च, प्रोघ० ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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