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________________ तित्थोगाली पइन्नय ऐरवत क्षेत्रों के मनुष्य एवं तिर्यञ्चों का वैताढ्य की कन्दरामों में निवास माना गया है। पर इस गाथा से प्रकट होता है कि तित्थोगालिय पइन्नयकार ने अवसर्पिणी काल के दुष.म दुःषमा के उत्तरार्द्ध से उत्सपिणी काल के दुषःम दुःषमा पूर्वार्द्ध तक अर्थात् २१ हजार वर्ष तक ही इन दश क्षेत्रों के मानवों एवं तिर्यञ्चों को वैताढ्यवास माना है । २४। एसो ठिति विरहिओ, कालो पुण होइ धम्मचरणस्स । एत्तो परं तु वोच्छं, छव्विहमणुमाणओ कालं ।२५। (एषः स्थितिविरहितः, कालः पुनर्भवति धर्मचरणस्य । इतः परं तु वक्ष्यामि, शडिवधं अनु मानतः कालं । ) __ यह धर्मचरण की स्थिति से रहित काल होता है । अब इस से प्रामे छः प्रकार के काल- मान का अनुक्रमशः मैं कथन करूंगा। २५। दससु वि कुरूण सरिसं, भरहमिव आसि सुसमसुसमाए । नवरिमणाट्ठियकालो, एरवयादीण वि तहेव ।२६। (दशष्वपि कुरूषु सदृशं. भरतमिदं आसीत् सुषम-सुषमायां । नवरं अनावर्तितः कालः, ऐरवतादीषु अपि तथैव ।।) सुषम-सुषमा नामक आरक में भरत क्षेत्र को तरह दशों कुरुक्षेत्रों तथा उसी प्रकार ऐरवत आदि क्षेत्रों में भी समान रूप से अनपवर्त्य अर्थात् अपरिवर्तनीय सुखपूर्ण काल रहता है। २६ । एतेसि खेत्ताणं, मणिकणगविभूसियाउ भूमीओ। रयणाण पंचवन्निय, सोहंतिह भित्ति-चित्ताओ ।२७। (एतेषां क्षेत्राणां, मणिकनकविभूषिताः भूमयः । रत्नानां पंचवर्णिकाः, शोभंति इह भित्ति-चित्राः ॥) उस सुषम-सुषमा नामक प्रारक में उपरि वणित सभी क्षेत्रों के भू-भाग मणियों एवं स्वर्ग से विभूषित और सर्वत्र पांच प्रकार के रत्नों से जटित मनोहर भित्ति-चित्र सुशोभित रहते हैं ।२७।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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