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[ तित्थोगाली पइन्नय
१५ दिन कम १८ कोटाकोटि सागरोपम काल पर्यन्त भरत तथा ऐरवत क्षेत्रों में कर्म भूमि (भोगभूमि) रहती है ।
ऐसा प्रतीत होता है कि १८ सागरोपम जैसे सुदीर्घ काल की तुलना में एक करोड २८ लाख पूर्व, तीन वर्ष साढ़े आठ मास का काल नगण्य समझकर तित्थोगालोय पन्नाकार ने यहां इस काल का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया है। यह भी संभव है कि इस प्रकार का स्पष्टीकरण करने वाली कोई गाथा पूर्व काल में रही हो और वह कालान्तर में लिपिकार के प्रमाद के कारण विलुप्त हो गई हो ।
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काल गणना में किसी प्रकार की भ्रान्ति न रहे, इस उद्देश्य से इस गाथा के अनन्तर निम्नलिखित गाथा प्रस्तुत की जा रही हैःचोवट्ठि सय सहस्सा, पुव्वाण दुगुणिया दृनि सुसमद्समासु । ता होइ कम्मभूमि, भर हेरवएसु दससु वासेसु ।।
तेवट्ठिं च सहस्सा, वियढावासाण होंति उड्ढस्स ।
जा होइ कम्मभूमि, भर हेरवएस वांसेसु । २४ । ( त्रिषष्टि च सहस्त्राः वैताढ्यावासानाम् भवन्ति ऊर्ध्वस्य । या भवति कर्मभूमिः भरतैरवतेषु वर्षेषु ।। )
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ऊपर के अर्थात् १ करोड २८ लाख पूर्व तीन वर्ष, ८ मास १५ दिन दोनों सुषमदुःषमा आरों. ८४ हजार वर्ष कम २ सागरोपम परिमाण वाले दोनों दुःषम- सुषमा आरकों दोनों दुषम आरकों एवं दोनों दुःषम दुःषमा प्रारकों के क्रमशः पूर्वाद्ध तथा उत्तरार्द्ध के ६३ हजार वर्ष परिमित काल और दोनों दुःषम- दुःषमा आारकों के क्रमशः परार्द्ध और पूर्वार्द्ध के २१ हजार वर्ष पर्यन्त वैताढ्य (गिरि कन्दराओं में) वास के काल को मिला कर दो सागरोपम, एक करोड़ २८ लाख पूर्व तीन वर्ष साढ़े आठ मास काल पर्यन्त भरत तथा ऐरवत क्षेत्रों में कर्मभूमि रहती है।
स्पष्टीकरण :- प्रचलित धारणानुसार दोनों दुःषम दुःषमा श्रारों के प्रारम्भ से अन्त तक पूरे ४२ हजार वर्ष पर्यन्त भरत तथा