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________________ तित्थोगालो पइन्नय । | ३२५ एवं सदेवनण्यासुराण, परिसयाए परिवुडो भगवं । अभिथुव्वंतो गिरा हिं. मज्झं मज्झेण सतवारं ।१०८५/ (एवं सदेवमनुजासुराणां, परिषदया परिवृतः भगवान् । अभिस्तूयमानः गिराभिः, मध्यं मध्येन शतद्वारस्य ।) इस प्रकार देवों, मनुष्यों एवं असुरों की परिषदों द्वारा परिवृत्त एवं स्तुति वचनों से स्तूयमान भगवान् महापद्म शतद्वार नगर के मध्यवर्ती मुख्य मार्गों में-१०८॥ अणवरय दाणसीलो, नलिणकुमारेण परिवुडो वीगे। उज्जाणं संपत्तो*, नामेणं पउमिणी संडं ।१०८६। (अनवरत दानशीलः, नलिनकुमारेण परिवृतः वीरः । उद्यानं संप्राप्तः (सन्), नाम्ना पद्मिनी खण्डम् ) । .. निरन्तर दान देते हुए तथा नलिन कुमार से सेवित वीरवर पद्मिनी खण्ड नामक उद्यान में पधारेंगे ।१०८६। ईसाणाए दिसाए, उइण्णो उत्तमाओ सीयाओ । सयमेव कुणइलोयं सक्को से पडिच्छाई केसे ।१०८७' त्रिर्मिकुलकम्। (ईशानायां दिशायां, उत्तीर्ण उत्तमायाः सीतायास्तु । स्वयमेव करोति लोचं, शक्रः तान् प्रतीच्छति केशान्० ) प्रभू महापद्म पद्मिनी खण्ड नामक उस उद्यान में ईशान दिशा में पहुंचने पर पालकी से नीचे उतर कर स्वयमेव पंचमुष्टि-लुञ्चन करेंगे। शक उन लुञ्चित केशों को ( अपने उत्तरीय में ) ग्रहण करेगा।१०८७ * तारांकित शब्देषु भविष्यत् काले भावीना भावानामवश्यंभावीत्वात् वर्त मानवत् प्रयोग: कृतो भाति । 0 शक्रस्तान् प्रतिच्छति केशान्-- शक्रस्तान के शान् स्वकीयोत्तरीये गृहणा तीत्यर्थः ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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