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________________ तित्थोगाली पइन्नय] [ ३१७ (स देव प्रतिगृहीतः, त्रिंशत् वर्षाणि वसति गृहवासे । अम्बापितृभ्यां भगवान् देवगतिं गताभ्यां प्रप्रजितः ।) देवों द्वारा परिसेवित वे भगवान् महापद्म ३० वर्ष तक गृहवास में रहेंगे और मातापिता के स्वर्गस्थ होने पर वे प्रवजित होंगे।१०५६। संवच्छरेण होही, अभिनिक्खमणं तु जिणवरिंदाणं । तो अत्थ संपयाणं, दाणं पव्वत्तइ पढम सरंमि ।१०५७। (संवत्सरेण भविष्यति, अभिनिष्क्रमणं तु जिनवरेन्द्राणाम् । ... (तु) ततः अर्थसम्पदानां, दानं प्रवर्तते प्रथमसूर्ये ।). . प्रवजित होने से पहले एक वर्ष तक प्रतिदिन सूर्योदय के पश्चात् एक प्रहर तक स्वर्ण-मुद्राओं का वर्षीदान देंगे और इस प्रकार लोकान्तिक देवों द्वारा किये गये निवेदन से एक वर्ष पश्चात् भगवान महापद्म का अभिनिष्क्रमण होगा।१०५७। सिंघाडग तिग चउक्क, चच्चर* चउमुह महापह पहेसु । दारेसु पुरवराण', रत्थामुह-मज्झयारेसु ।१०५८। (शृंगाटक-त्रिक-चतुष्क, चत्वर-चतुर्मुख महापथ-पथेषु ।...... द्वारेसु पुरवराणां, रथ्यामुख-मध्यकारेषु ।) _ सिंघाड़े के आकार के त्रिपथों (तिराहों), चतुष्पथों (चौराहों), जिस स्थान से बहुत सी गलियों में माने जाने के मार्ग हो: जिन स्थानों से चारों दिशाओं में जाया जा सके, राजपथों, श्रेष्ठ नगरों की प्रतोलिकाओं (घुमाव वाले द्वारों), गलियों के मुहानों एवं मध्यवर्ती भागों में--1१०५८। * चच्चर-चत्वर=बहुरथ्यापातस्थानम् ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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