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________________ तित्थोगालो पइन्नय ] अह तो अम्बा पितरो, जाणित्ता अहिय अट्ठवासागं । कय कोउगलंकारं, लेहायरियस्स उवर्णेति । १०४९ । ( अथ तौ अम्बापितरौ, ज्ञात्वा अधिक अष्टवर्षाकम् । कृत कौतुकालङ्कारं, लेखाचार्यस्य उपनयतः । ) तदनन्तर भगवान् महापद्म को माता-पिता आठ वर्ष से अधिक वय के जान कर कौतुकालङ्कारों से अलंकृत कर लेखाचार्य के पास ल े जायेंगे |१०४६ । सक्को य तस्समक्खं भयवंतमासणे निवेसित्ता । सदस्य लक्खणं पुच्छे, वागरणं अवयवा (ण) इंदं । १०५० । ( शक्रश्च तस्य समक्षं, भगवन्तं आसने निवेशयित्वा । ܕ [ ३१५ शब्दस्य लक्षणं पृच्छेत् (प्रक्ष्यति ), व्याकरणं अवयवादीनां इन्द्र ं ।) देवराज शक्र ल ेखाचार्य के समक्ष ही भगवान् महापद्म को उच्च आसन पर आसीन कर उनसे शब्द का स्वरूप पूछेगा । तीन, ज्ञान के धारक बालक महापद्म इन्द्र को शब्द के लक्षण, अवयव आदि की विस्तार पूर्वक व्याख्या कर व्याकरण के गूढ रहस्य बतायेंगे । १०५०। अह तं अंमापितरो, जाणित्ता अहिग अट्ठ वासागं । कय को उगलंकारं, रायभिसेगं तु काहिंति । १०५१ । ( अथ तं अम्बापितरौ, ज्ञात्वा अधिक अष्टवर्षाकम् । कृत कौतुकालंकारं ( रस्य), राज्याभिषेकं तु करिष्यन्ति ।) तदनन्तर माता-पिता भगवान् महापद्म को आठ वर्ष से अधिक आयु का जानकर कौतुकालंकार करने के पश्चात् उनका राज्याभिषेक करेंगे । १०५१। तिहि करणंमि पसत्ये महंत सामंतकुल पसूयाए । कारिंति पाणिगहणं, जसोयवर रायकण्णाए । २०५२। ( तिथि - करणे प्रशस्ते, महत् सामन्तकुलप्रसूतायाः । कारयन्ति पाणिग्रहणं, यशोदावरराजकन्यायाः ।) ,
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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