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तित्योगालो पइन्नय
उस समय लोग पारस्परिक द्वेष तथा त्रास से रहित, विप्लव, उथल-पुथल, भय, दण्ड, आतताई के आक्रमण, ईति-भीति (महामारी), और चोर लुटेरों के भय से विहीन तथा कर भार से उन्मुक्त होंगे । १०४५। अह वढति सो भगवं, सुमतिरायस्स संगतो धीरो । दासीदास परिवुडो, परिकिण्णो पीढमद्देहि ।१०४६। अथ वर्द्ध ते स भगवान् . सुमतिराज्ञः संगतः धीरः। दासीदासपरिवृतः, परिकीर्णः पीठमः ।)
सुमति नृपति के आनन्दवर्द्धक वे धैर्यशाली प्रभु महापद्म दासदासियों से घिरे हुए एवं सुखासनों पीठमई आदि पर सुशोभित हो बढ़ने लगेंगे ।१०४६। असित सिरतो सुनयणो, बिंबोट्ठो धवलदंती पंतीओ। .. वरपउमगब्भगोरो, फुल्लुप्पल गंधनीसासो ।१०४७।। (असित शिरजः सुनयनः, बिम्बोष्ठः धवलदन्तपंक्तीकः । वरपद्मगर्भगौरः, फुल्लोत्पलगन्धनिःश्वासः ।)
भगवान् महापद्म भ्रमर सन्निभ काली केश राशि; अति सुन्दर विशाल लोचन युगल बिम्ब फल तुल्य लाल-लाल अोष्ट-पुट, स्वच्छ धवल दन्त-पंक्तियों वाले, श्रेष्ठ पद्म के गर्भ के समान गौर वर्ण
और प्रफुल्लित नीलकमल के फूल की गन्ध के समान सुगन्धित श्वास निःश्वास वाले होंगे ।१०४७। जातीसरो उ भयवं, अप्परि वडिएहि तिहि उ नाणेहिं । कंतीहि य पुट्ठीहि य, अब्भहितो तेहिं मणुएहिं ।१०४८। (जातिस्मरस्तु भगवान् , अप्रतिपतितैत्रिभिस्तु ज्ञानः । कान्तिभिश्च पुष्टिभिश्च, अभ्यधिकः तेभ्यः मनुजेभ्यः ।)
वे प्रभु महापद्म जातिस्मर ज्ञान तथा कभी क्षीण न होने वाले मति-श्र ति-अवधि-इन तीन ज्ञान से युक्त तथा उस समय के सभी मनुष्यों की अपेक्षा अत्यधिक कान्ति एवं पुष्टि वाले होंगे ।१०४८)