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तित्थोगाली पन्नइय ]
जम्हा अम्हं नगरे, जायं मे इमस्स पुत्तस्स । परमेहिं महावासं, नाम से तो महा पउमो । १०४२। ( यस्मात् अस्माकं नगरे, जातं जन्मनि अस्य पुत्रस्य । पद्म : महद्वर्षं नाम अस्य अतो महापद्मः । )
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महाराज सुमति नामकरण के समय अपने परिजनों के समक्ष कहेंगे -- "जिस समय हमारे नगर में इस पुत्र का जन्म हुआ उस समय पद्म मणियों की वर्षा हुई प्रतः इसका नाम महापद्म रखा जाता है । १०४२।
रिद्धित्थिमिय समिद्ध, भारहवासं जिनिंदकालम्मि । बहु अतिसय संपण्णं, सरलोगनिभं गुणसमिद्धं । १०४३। (ऋद्धिस्तिमित समृद्ध, भारतवर्षं जिनेन्द्रकाले । बह्वतिशयसंपन्नं सुरलोकनिभं गुणसमृद्धम् )
जिनेन्द्रों (तीर्थ करों) के समय में भरत क्षेत्र समस्त ऋद्धियों से भरपूर अत्यन्त समृद्ध, अनेक अतिशयों से सम्पन्न, गुणों का भण्डार और देवलाक के समान होगा । १०४३ ।
गामानगरभूया, नगराणि य देवलोग सरिसाणि ।
रायसमा य कुटुम्बी, वेसंमण सम्माय रायाणो । १०४४ ॥ - (ग्रामा नगरभूताः, नगराणि च देवलोकसदृशानि । राजसमाः च कुटुम्बिनः, वैश्रवण समाः च राजानः । )
उस उसम के ग्राम नगरों के समान, नगर देवलोक के समान, कुटुम्बी राजा के समान और राजा वैश्रवण के समान होंगे । १०४४ । भंगत्तासविरहितो, डमरुन्लोल भय डंडरहितो य । परचक्क ईति तक्कर अ, करभर विवज्जितो लोगो । २०४५ । (भंग त्रास विरहितः, डमर लोल्य-भय-दण्डरहितश्च । परचक्र - ईति तस्कर च करभार विवर्जितः लोकः 1)
* डमर - विप्लवः