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तित्थोगाली पइन्नय ]
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विविध रत्नों की कलकल करती हुई वसुधारा की वृष्टि हुई और गगनमण्डल में देवताओं द्वारा प्रताडित दुन्दुभियों का मधुरगम्भीर घोष गु ंजरित हो उठेगा । १०३४ ।
जाण विमाणारूढा, अह एंति तहि दिसा कुमारीउ । उड्ढमहोलोगम्मिय, वत्थव्वा तिरिय लोगे य । १०३५ । ( यान्ना विमानारूढा, अथ यन्ति तत्र दिशाकुमार्यः । उर्ध्व अधोलोके च वास्तव्याः तिर्यक् लोके च ।)
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तदनन्तर उर्ध्व अधः और तिर्यक् लोक में रहने वाली दिशा कुमारियां यान- विमानों पर आरूढ़ हो वहां आवेगी । १०३५ । जाण विमाण पभाए, रयणी आसि य सा दिवस भूया |
सुर- कण्णा हि समहियं सन्निय नगरे वि एरिच्छा | १०३६ । ( यान- विमान प्रभाभिः रजनी आसीत् सा दिवसभूता ! सुरकन्याभिः समधिकाः सर्वास्मिन् नगरेऽपि इदृशा ।)
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यान- विमानों के दिव्य प्रकाश के कारण वह रात्रि दिवस के समान प्रकाशमान होगी । समस्त शतद्वारा नगरी प्रकाश से जगमगा उठेगी। जिन - जन्मभवन में जहां कि दिक्कुमारिकाएँ स्वयं उपस्थित - होंगी वहां विशेष प्रकाश व्याप्त होगा । १०३६।
दसमुवि वासेसेवं, उप्पण्णा जिष्णवरा य दसचैव । जम्मण महो य सव्वो, नेयव्त्रो जाव घोसणयं । १०३७। (दशस्वपि वर्षेष्वेवं, उत्पन्ना जिणवरा च दश चैव । जन्म महश्च सर्वः, ज्ञातव्यः यावत् घोषणकम् ।)
इसी प्रकार दशों क्षेत्रों में दश तीर्थ कर (एक ही समय में) उत्पन्न होंगे। उनके जन्म महोत्सव का वर्णन ऋषभादि के जन्माबसर पर दिशा कुमारिकाश्रों के आगमन से लेकर देवेन्द्रों द्वारा को गई घोषणा तक उसो प्रकार समझना चाहिए, जैसा कि पहले उल्लेख कर दिया गया है । १०३७।