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[ तित्थोगाली पइन्नय
इसी प्रकार शेष चारों ऐरवत और चारों भरत क्षेत्रों में, चन्द्र का हस्तोत्तरा नक्षत्र के साथ योग होने पर आठ तीर्थकर अपनी अपनी माता की कुक्षि में उत्पन्न होंगे ।१०३०। जो सो सेणियराया, कालं काऊण काल मासम्मि । रयणप्पभाए तीसे, उच्चहिचा य इहयम्मि ।१०३१। (यः स श्रेणिकराजा, कालं कृत्वा कालमासे । रत्न प्रभायां तस्यां, उद्वयं च इहके i) सीमंत नरगामओ उ , आउ परिपालिऊण तो भगवं । चउरासीति सहस्साणं, वासाणं सो महापउमो ।१०३२। (सीमंत नरकात्तु . आयुः परिपाल्य ततः भगवान् । चतुरसीति सहस्राणां, वर्षाणां स महापद्मः ।)
भगवान् महावीर का परम भक्त राजा श्रेणिक था, वह अपनी प्राय पूर्ण होने पर काल धर्म को प्राप्त हो रत्नप्रभा नाम की में उत्पन्न हो वहां सीमन्त नरक की अपनी ८४,००० वर्ष की प्रायू पूर्णकर वह भगवान महापद्म के रूप में रानी भद्रा की कक्षि में गर्भ रूप से उत्पन्न होंगे ।१०३११-- १०३२। चेत्तस्स सद्ध तेरसि, चंदे हत्युत्तरेण जोगेणं । . सिद्धत्थ महा पउमा, जाया दस एकसमएणं ।१०३३॥ (चैत्रस्य शुक्ल त्रयोदश्यां, चन्द्रस्य हस्तोत्तरेण योगेन । सिद्धार्थ महापद्माः, जाता दश एक समयेन ।)
चैत्र शुक्ला चतुर्दशो को चन्द्र का हस्तोतरा के साथ योग होने पर सिद्धार्थ और महापद्म १० तीर्थ कर (दश क्षेत्रों में) एक ही समय में उत्पन्न होंगे ।१०३३॥ नाणा रयणा विचित्ता, वसुधारा निवडिया कलकलेती । गंभीर मडुर सहो य, दुदुभिताडियो गयणे ।१०३४। ... (नाना रत्न विचित्रा, वसुधारा निपतिता कल कलन्ती । गम्भीरमधुर शब्दश्च दुंदुमिताडितः गगने ।)