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________________ तित्थोगाली पइन्नय ] , ( एतानि चतुर्दश स्वप्नानि पश्यति भद्रा सुखेन प्रसुप्ता | यस्या रजन्यां उत्पन्नः, कुक्षौ महायशाः पद्मः । ) जिस रात्रि में उत्सर्पिणी काल के महान् यशस्वी प्रथम तीर्थकर पद्म रानी भद्रा की कुक्षि में उपपन्न होंगे उस रात्रि में सुखपूर्वक सोती हुई भद्रा रानी ये चौदह स्वप्न देखेगी । १२७ [ ३०६ , एरवते वय एवं समुह (सुमइ) रायस्स भारिया भद्दा ! सयणिज्जे सुह सुचा, चउद्दस सुमिणे य दिच्छिहिति । १०२८ । ( ऐर वतेऽपि च एवं सुमतिराज्ञः भार्या भद्रा । शयनीये सुखसुप्ता, चतुर्दश स्वप्नानि च द्रक्ष्यति । ) ऐरवत क्षेत्र में भी सुमति नामक राजा की रानी भद्रा शैया पर सुखपूर्वक सोती हुई चौदह स्वप्न देखेगी । १०२८ । -गय उसभ गाहा (गज़, वृषभ आदि चतुर्दश स्वप्नों की वही उपरिलिखित गाथा ।) एते चउदस सुमिणे पासइ. भद्दा सुहेण पासुता । जं स्यणिं उबवण्णो, कुच्छिसि सिद्धत्थ तित्थयरो । १०२९ । ( एतानि चतुर्दश स्वप्नानि पश्यति भद्रा सुखेन प्रसुप्ता यस्यां रजन्यां उपपन्नः कुक्षौ सिद्धार्थं तीर्थंकरः ।) 1 जिस रात्रि में ऐरवत क्षेत्र के प्रथम तीर्थंकर सिद्धार्थ भद्रा रानी के गर्भ में आये उस रात्रि में सुख पूर्वक सोती हुई भद्रा ये चौदह स्वप्न देखेगी । १०२ । उमुवि एरवर सु एवं चउसु विय भरहवासे स । '' 1 उवण्णा तित्थयरा, हत्युत्तर जोग जुत्तेणं । १०३०। ( चतुःष्वपि ऐरवतेषु एवं चतुःष्वपि च भरतवर्षेषु । उपपन्ना तीर्थंकराः, हस्तोत्तरायोग युक्तन ।) '
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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