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________________ ३०८ ] [ तित्थोगाली पइन्नय दूसम सुस्सम कालो, उदही समाणाण कोडी कोडीओ। जिण चक्कि दसाराणं(वासुदेवाणं), किंवि समासं पवक्खामि ।१०२४। (दुःषमसुषमाकाल, उदधि समानानां (सागरोपम) कोट्या कोटिकः । जिनचक्रि वासुदेवानां, किमपि समासेन प्रवक्ष्यामि ।) उत्सर्पिणी का दुःषम सुष्षम काल एक कोटा कोटि सागरोपम(४२,००० वर्ष कम इस प्रकार का उल्लेख होना चाहिए पर इस गाथा में ऐसा उल्लेख नहीं है)-का होगा । अब मैं जिन (तीर्थकर), चक्रवर्ती और दशा) के सम्बन्ध में संक्षेपतः कुछ कहूँगा।१०२४॥ नगरम्मि सत दुवारे, सुमइ रायस्स भारिया भद्दा । सयणिज्जे सुह सुत्ता, चोदस सुमिणे उ पेच्छिहिति ।१०२५। (नगरे शतद्वारे, सुमति राज्ञः भार्या भद्रा । शयनीये सुखसुप्ता, चतुर्दश स्वप्नानि तु प्रक्षयिष्यति ।) __ शतद्वार नामक नगर में राजा सुमति की रानी भद्रा शय्या पर सुख पूर्वक सोती हुई (निम्नलिखित) चौदह स्वप्न देखेगी ।१०२५। गय-उसम-सीह-अभिसेय-दाम-ससि-दिणयरं झयं कुभं । पउमसर-सागर-विमाण भवण* रयणुच्चय-सिहिं च ।१०२६। (गज-वृषम-सिंह-अभिषेक-दाम-शशि-दिनकर-झसं-कुम्भम् । . पद्मसर-सागर-विमान भवन-रत्नोच्चय-शिखि च।) ___ गज, वृषभ, सिंह, अभिषेक, दाम शशि, सूर्य, मत्स्य, कुभकलश, पद्मसर, सागर, भवन ( विमान नहीं), रत्नराशि और निर्धू माग्नि ।१०२६।। एते चउद्दस सुमिणे, पासइ भद्दा सुहेण पस्सुत्ता । जं रयणि उबवण्णो, कुच्छिसि महायसो पउमो ।१०२७/ * यदा तीर्थंकरजीव: देवलोकात् गर्भ च्यवति तदा तीर्थ करमाता द्वादशमे . स्वप्ने विमानं. पश्यति । तीर्थंकर जीवस्य नरकात् गर्भ च्यवनावस्थायां तु माता भवनं पश्यति ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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