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तित्थोगाली पइन्नय ]
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उग्र, भोग राजन्य और क्षत्रिय - यह चार प्रकार का संग्रह भी राज्य चलाने के लिये किया जायेगा। अग्नि के उत्पन्न होने पर लोग रंघन - पाकादि भी इन कुलकरों के समय में करेंगे । १०१३ ।
जह जह वट्टति कालो, तह तह बहूति रूव सो भग्गा । जस कित्ती सील लज्जा, नरनारी गणाण रिदी ओ । १०१४। ( यथा यथा वर्तते कालः, तथा तथा वर्द्धन्ते रूप सौभाग्याः । यशः कीर्ति - शील- लज्जा, नरनारिगणानां ऋद्धयःतु ।)
ज्यों-ज्यों काल व्यतीत होता जायेगा, त्यों-त्यों नरनारीगण के रूप, सौभाग्य, यश, कीर्ति, शील, लज्जा और ऋद्धियों की भिवृद्धि होती जायेमी । १०१४ |
हल करिसण कम्मत्ता, सुवण्ण मणिरयण कंस दूसावि । भोण गंध विहीउ, वडू देति नरगणाण चिरं । १०१५ । ( हलकर्षणकर्मता (कर्मकारिता), स्वर्ण मणिरत्न कांस्य दृष्यान्यपि । भोजनगन्ध विधयः, वर्द्धन्ते नरगणानां चिरम् 1 )
उस समय के लोगों के हल, कृषि कार्य, कर्मकारिता, स्वर्ण, मणिरत्न, कांसी, वस्त्र, भोजन, गन्ध विधि आदि की भी उत्तरोत्तर अभिवृद्धि होगी । १०१५
दुद्धदहीणवणीयं, घयं च तेल्लं च होहिती रम्मं । महुमज्ज भोई (य) णाई, बढती नरगणाण चिरं । १०१६। (दुग्धदधिनवनीतं घृतं च तेलं च भविष्यति रम्यम् । मधुमद्य भोजनादिनि, वर्द्धन्ते नरगणानां चिरम् ।)
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दूध, दही, मक्खन, घृत और तैल आदि सुस्वादु होंगे । उस समय के लोगों के पास मधु, मद्य एवं भोज्य पदार्थों की भी अभिवृद्धि होगी । १०१६।
पढमो उ कुल गराणं, नामेणं विमलवाहणोतइया ।
जातीसरी उ राया, काही कुल रायधम्मो उ । १०१७ |