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________________ ३०४ ] [ तित्थोगाली पइन्नय चउ सुवि एरवए सु, एवं चउसुवि य भरहवासे सु । एक्केक्कम्मि उ, होहिंति कुलगरा सत्त ।१०१०। (चतसष्वपि ऐरवतेषु, एवं चतुष्ष्वपि च भरतवर्षेषु । एकैकके तु, भविष्यन्ति कुलकराः सप्तः ।) इसी प्रकार शेष चारों ही ऐरवत क्षेत्रों तथा चारों . भरत क्षेत्रों में, प्रत्येक में सात-सात कुलकर होंगे।१०१०। गाम नगरागराणं, गोउल संबाह संनिवेसाणं । कुलनीति रायनीतीण, कारगा कुलगरा तइया ।१०११। (ग्रामनगराकराणं, गोकुल संवाह सन्निवेषाणाम् । कुल नीतिः राजनीत्योः, कारका कुलकराः तदा ।) उस समय के वे कलकर ग्राम, नगर, प्राकर, गोकल, संवाह एवं सन्निवेशों तथा कुल नीति एवं राजनीति के निर्माता होंगे।१०११॥ आसा हत्थी गावो, गहियाई रज्ज संगह निमित्तं । . .. ववहारो लेहवणं, होही सामाइ एसिं तु ।१०१२। (अश्वाः हस्तिनः गावः गृहीतानि राज्यसंग्रहनिमित्तम् । व्यवहारः लेखापन, भविष्यति सामादि एषां तु ।) उन कुलकरों द्वारा घोड़ों, हाथियों, गायों आदि को राज्य संग्रह के लिये पकड़ा जायेगा। व्यवहार अर्थात् आदान-प्रदान, लेखन और साम आदि दण्ड नीतियों का भी इन्हीं के समय में प्रचलन होगा।१०१२। उग्गा मोगा राइण्ण, खेत्तिया संगहो भवे च उहा । उप्पण्णे अगणिमिय, रंधणमातीणी काहिंति ।१०१३। (उग्राः भोगा (जाः) राजन्याः, क्षत्रियाः संग्रहः भवेत् चतुर्धा । उत्पन्न अग्नौ च, रन्धनादीनि करिष्यन्ति ।)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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