________________
मा।
.
तित्थोगाली पइन्नय ।
[ ३०३ "जंबूद्दीवेणं दीवे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए भारहे वासे सत्त कुलगरा भविसंति, तं जहाः--
मियवाहणे सुभूमे य, सुप्पभे य सयंपभे।
दत्रो सुहुमे सुबंधू या आगमिस्साण होक्खति ॥'] एरावयम्मि सत्तेव, कुलगरा विमलवाहणो पढमो। बीउ हु विउलवाहण, नय समग्ग विशारदो धीरो ।१००७। (एरावते सप्तव, कुलकरा, विमलवाहन प्रथमः । पीउहु विपुलवाहन नय समग्र विषादरः धीरः ।)
. ऐरवत क्षक्ष में भी उस समय क्रमशः सात कुलकर उत्पन्न होंगे जिनमें विमलवाहन प्रथम. समस्त नयों का विशारद धीर कुलकर विपुलवाहन द्वितीयः--११००७। दढधणु दसधणुगो विय तत्वोसय घणु पडि सुई चेव । संमुची सत्तम गो विय, गामनगर पट्टणा इगरा ।१००८। (दशधनुः दशधानुष्कोऽपिच, ततः शतधनुः प्रतिषेधी चैव । संमुत्ती सप्तमकोऽपिच ग्रामनगरपत्तनादिकराः ।)
तीसरा दृढ़धन, चौथा दशधनुक, पांचवां शतधनु, छठ्ठा प्रतिश्र ति और सातवां संमुत्ती । ये ग्राम-नगर-पत्तन प्रादि का निर्माण कराने वाले होंगे । १००८। ...
__[समवायांग और स्थानांग में उल्लेख है कि आगामी उत्सर्पिणी में ऐरक्त क्षेत्र में १० कुलकर होंगे।] . उस्सप्पिणी इमीसे, बीति समाए य उत्तरंतीए । तत्थ बहुमञ्झ देसे, उप्पण्या कुलगरा सत्त ।१००९। । (उत्सर्पिण्या इमायाः, द्वितीयायां समायां च उत्तरन्त्याम् । तत्र बहुमध्यदेशे, उत्पन्ना कुलकरा सप्तः ।)
उत्सर्पिणी की दूसरी दुःषमा नाम की समा के ढलते समय में भरत क्षेत्र के गहरे मध्य भाग में सात कुलकर उत्पन्न होंगे। १००६।