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[ तित्योगाली पनय
पुनः यथा समय अमृत के समान सरस जल की अच्छी वर्षाएं होंगी जिससे कि मानव वर्ग में किसी प्रकार के रोग संघात उत्पन्न नहीं होंगे । १००३ ।
अह दुसमाए तीसे, सत्तण्हं कुलगराण उप्पत्ती । कायव्वा आणपुच्ची, जह परिवाडीए सव्वेसिं । १००४ । (अय दुःषमायां तस्यां सप्तानां कुलकराणां उत्पत्तिः । कर्त्तव्या आनुपूर्वीः, यथा परिपाट्या सर्वेणाम् । )
उत्सर्पिणी काल के उस दुःषम नामक द्वितीय आरक में सात कुलकर उत्पन्न होंगे। उन सब का परिपाटी के अनुसार आनुपूर्वी कर लेनी चाहिए । १००४
पढमेत्थ विमलवाहण, सुदाम संगम सुपास नामे य । दत्ते सुनतसु मं, इसरोव निदिट्ठा | १००५ | (प्रथमोऽत्र विमलवाहनः, सुदाम संगम सुपार्श्व नामा च । दत्तः सुनखः तसुमं इति सप्तैव निर्दिष्टाः ।)
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प्रथम कुलकर का नाव विमलवाहन, द्वितीय सुदाम, तीसरे संगम. चौथे सुपार्श्व नामक, पांचवें दत्त, छट्ठ े सुनख और सातवे तसुमं होगा । इस प्रकार ये सात कुलकर बताये गये हैं । १००५ । उस्सप्पिणी इमीसे, विनियाए समाए य गंग सिघृणं । एत्थ बहुमज्झ देसे, उप्पण्णा कुलगरा सच | १००६ । उत्सर्पिण्या: हमायाः, द्वितीयायां समायां च गंगासिन्वोः । अत्र बहुमध्य देशे, उत्पन्ना कुलकराः सप्तः । )
उस आगामी उत्सर्पिणी की दूसरी समा अर्थात् द्वितीय आरक में गंगा और सिन्धु के मध्यवर्ती प्रदेश में सात कुलकर उत्पन्न होंगे । १००६ ।
[ स्पष्टीकरणः -- समवायांग सूत्र में आगामी उत्सर्पिणीकाल के द्वितीय चरक में भरत क्षेत्र के भावी सात कुलकरों के नाम इस प्रकार उल्लिखित हैं: