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________________ [ २६५ तित्योगालो पइन्नय ] सीउण्ह पगलिएहिं, वित्ती तेसिं तु होई मच्छेहिं । बायालीस सहस्सा. वासाणं निरवसेसाउ ।९७९।। (शीतोष्ण प्रगलितैः, वृत्तिस्तेषां तु भवति मत्स्यः । द्वाचत्वारिंशत् सहस्राः. वर्षाणां निरवशेषास्तु ।) इस प्रकार अवसर्पिण काल के अन्तिम इकवीस हजार वर्ष के दुष्षमदुष्षमा नामक षष्ठम आरक और उत्सर्पिणो काल के उतनी ही स्थिति वाले दुष्षमदुष्षमा नामक प्रथम प्रारक में कुल मिला कर पूरे ४२००० (बयालीस हजार) वर्षों तक बिलवासी मनुष्यों की वत्ति ( आजीविका-अथवा उदरपूर्ति ) शीत तथा उष्णता से गले मत्स्यों के मांस से चलती रहेगी।९७६। ओसप्पिणीए अद्ध, [तह] अद्ध उस्सप्पिणीए तं होई । एयम्मि गए काले, होइंति पंच मेहा उ ९८०। (अवसर्पिण्या अद्ध, [तथा] अद्ध उत्सपिण्यां तद् भवति । एतस्मिन् गते काले, भवन्ति पंच मेघास्तु ।) उन बयालीस हजार वर्षों का आधा काल अर्थात् २१ हजार वर्ष का काल अवसपिणी में और शेष २१ हजार वर्ष का आधा काल उत्मपिगी में होगा। इस ४२,००० वर्ष के दो दुष्षमादृष्षम आरकों के काल के व्यतीत हो जाने के पश्चात् आकाश में क्रमशः निम्नलिखित पांच प्रकार के मेघ प्रकट होंगे ।६८०। पुक्खल संवट्टोविय, खीरो घयतोय अमयमहो य । पंचमओ रसमेघो, सव्वे वरिसिंहि दससुवि खेत सु ।९८१। (पुष्करसंवर्तोऽपि च. क्षीरः घततोय-अमृत मेघश्च । पंचमकः रसमेघः, सर्व वर्षिष्यन्ति दशस्वपि क्षेत्रेषु ।) पुष्कर संवर्त मेघ, क्षोरमेघ घृततोय मेघ, अमृत मेघ और पांचवाँ रस मेघ-ये पांचों मेघ उपर्युक्त दशों क्षेत्रों में क्रमशः बरसेंगे ।६८१।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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