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| तित्थोगाली पइन्नय
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एक्केको अणुबद्ध, वासीहिति सत्तं सच दिवसाई । पंचतीसं दिवसे, बदलिया होहिंति सोमा [उ] ९८२ । ( एकैकोऽनुबद्धः, वर्षिष्यति सप्त सप्त दिवसानि । पञ्चत्रिंशहिवसे, बलाहकाः भविष्यन्ति सोमाः )
इन पांचों में से अनुक्रमशः प्रत्येक मेघ एक के पश्चात् एक निरन्तर सात सात दिन तक वर्षा करेंगे। पेंतीसवें दिन में सौम्य होंगे ६८२ |
बादल
पढमो उहां निवत् हिति, धन्नं बीओकरेहि मेहोय । तो नहं [सणेहं] जणयिहि ओसहि आई चउत्थो य । ९८३ ( प्रथम उष्णतां निवर्तयिष्यति. धान्यं द्वितीयः करिष्यति संघश्च । तृतीयः स्नेहः जनयिष्यति. औषधिकानि चतुर्थश्च ।)
प्रथम पुष्कर संवर्त मेघ पृथ्वी के ताप का हरण करेगा। दूसरा क्षीर मेघ धान्य उत्पन्न करेगा । तोसरा घृततोय मेघ पृथ्वी में स्नेह अर्थात् चिकनाहट और चौथा अमृत मेघ औषधियां उत्पन्न करेगा | ६८३ |
पंचमओ रसमेहा, ते सिंचिहि पुढवि-रुक्ख-भादीण | एवं कमेणजाया, वण्णा गुणेहिं उवोवेया ९८४ | (पंचमकः रसमेघाः, तेषां चेह पृथ्वीवादीनां । एवं क्रमेण जाता, वर्णादिगुणैः उपपताः )
पांचवें रसमेघ पृथ्वी, वृक्ष लता, गुल्मादि को सिंचित करेंगे। इस प्रकार पृथ्वी वर्ण गन्ध रूप रसादि से युक्त एवं क्रमशः समृद्ध होगी | ६८४ |
उस्सप्पिणी [पर] - दुस्समाए, पत्ताई चरम रातीए । वासिहिति सव्वराई, महत्तरनिरंतरं वासं । ९८५ । (उत्सर्पिण्या: परम दुष्षम दुष्षमायां प्राप्तायां चरम रात्रौ । वर्षिष्यति सर्वंरागं, महत्तर निरन्तरं वर्षम् । )