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तिस्थोगाली पइन्नय।
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(शेषं तु बीजमात्रं, भविष्यति सर्वाणां जीवजातीनाम् । कुणिमाहाराः सर्वे , निश्रयां संध्या कालस्य ।)
सभी जीव जातियों का बीज मात्र शेष रहेगा। वे सब रात्रि के दोनों संधिकालों में निकृष्ट प्राहार करने वाले होंये ९७२। रहपहमेतं तु जलं. होही बहुमच्छकच्छभाइण्णं । तम्मि समए नदीणं, गंगादीणं. दसण्हं पि ९७३। (रथपथमात्रं तु जलं, भविष्यति बहुमत्स्यकच्छपाकीर्णम् । तस्मिन् समये नदीनां, गंगादीनां दशानामपि ) .
. उस समय दश गंगा और दश सिन्धु नदियों में रथ के मार्ग तुल्य प्रवाह में मछलियों और कछुओं से भरा पानी होगा।९७३। विसग्गिखार-पांणि य, वरिसहि मंघा य घोर परिसा य । एक्केक्क सत्तराई, होहिंति भरहेरवामि ९७४। (विषाग्नि क्षार पानीयं, वर्षिष्यन्ति मेघाश्च घोर वर्षाश्च । एकैक सप्त रात्राणि, भविष्यन्ति भरतैरव योः ।)
उस समय भरत क्षेत्र में बादल सात-सात रात दिन तक क्रमशः विष, अग्नि और क्षार मिश्रित जल की घोर वर्षा करेंगे ।६७४ चुण्णिय सेलं भिण्णसलिलं, गंभीर विसम भूमितलं । उदही जहा समतलं. होही भरहं निरभिरामं ९७५। (चूर्णित शैलं भिन्नसलिलं, गम्भीर विसम-भूमितलम् । उदधिः यथा [वत्] समतलं, भविष्यति भरतं निरभिरामम् )
सात-सात अहोरात्रों की उन तीन घोर वृष्टियों के जल प्रवाह से पर्बत विचूणित और विषम स्थल पूर्णतः समतल हो जायेंगे। इस प्रकार समस्त भरत क्षेत्र समुद्र के समान समतल हो जायगा ।६७५। उस्सप्पिणीए तीसे, वितिकताए चरमसमयम्मि । तो आगमेसियाए, ओसप्पिणी ए तहव्वुवठवणा .९७६।