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[ तित्थोगाली पइन्नय
वे नर-नारी दुष्षम दुष्षमा के प्रारम्भ में बोस वर्ष की आयु और शरीर को दो हाथ ऊँचाई वाले होंगे। इस प्रारक के अन्त में उनकी आयु १६ वर्ष और शरीर की ऊँचाई एक मुण्ड हाथ होगी।६६८। जिय पक्खिवग्ग सीह, चउपया पंच इंदिया जे य ।। गय गो महिस खरोट्ठ पसूय विविहा य पाणिगणो ।९६९। (यावन्तः पक्षिवर्ग सिंहचतुष्पदाः पंचेन्द्रियाः ये च । गज गो महिष खरोष्ट्रपशवश्च विविधश्च प्राणिगणः ।)
जितने पक्षिवर्ग के सभी जाति के पक्षी. सिंह. हाथी, गौ, महिष, गधे, ऊंट आदि पंचेन्द्रिय चतुष्पद पशुवर्ग और अन्य विविध प्राणिवर्ग हैं, वे सब--।६६६। आगमियाए उस्सप्पिणीए, होहिंति बीय मेत्ताई । बावत्तरि जुयलाई, नराणतत्तोय सवण्णाउ ।९७०। (आगामिन्यां उत्सर्पिण्यां, भविष्यन्ति बीजमात्राणि । द्वासप्ततिः युगलानि, नराणां ततश्च सवर्णानि ।)
आगामी उत्सपिणी काल ( के प्रथम प्रारक ) में बीज मात्र होंगे। उस समय में मानव वर्ग के बहत्तर (७२) सवर्ण अर्थात् सहोदर नर-नारी-युगल हींगे।६७०। होहिंति बिलावासी, बावत्तरि ते बिलाउ वेयड्ढे । उभतो तडे नईणं, नव नव एक्के क्कए कले ९७१। (भविष्यन्ति बिला आवासिनः, द्वासप्ततिः ते बिलास्तु वैताढ़ये । उभयतोः तटयोः नदीनां, नव नव एक्कैकके कुले ।)
वैताढ्य पर्वत में वे ७२ बिल होंगे । नदियों, के दोनों तटों पर, प्रत्येक तट पर नौ, नौ बिलों के हिसाब से होंगे ।९७१। सेसं तु वीजमेत्तं, होहिं सव्वेसि-जीवजातीणं । कुणिमाहारा सव्वे, निसाए संज्झ कालस्स ।९७२।