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तित्थोगाली पइन्नय]
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(दशस्वपि वर्षेष्वेषा, करिष्यति दुःखानि मनुष्यतिर्यञ्चानाम् । भविष्यति सुस्सिरा [१] भूमिः मुर्मुर अंगारसमतापा ।)
यह दुष्षम-दुष्षमा ढाई द्वीप के ५ भरत और ५ ऐरवत, इन दशों क्षेत्रों में मनुष्यों और तिर्यञ्चों के लिये दारुण दुःखपूर्णा होगी। इस काल में भूमि अंगारों की चिन्गारियों के समान ताप वाली धूकधुकायमान होगी।६६। सीउण्हं बिलवासी, गमेति कह कहवि दुक्खसंतत्ता । वसण विहूणा मणुया. इत्थीओ विगयबलाओ ९६६। (शीतोष्णं बिलवासिनः, गमयन्ति कथं कथमपि दुःख संतप्ताः । वसनविहीनाः मनुजाः स्त्रियः विगतबलाः ।) । . ठिठुरा देने वाले शीत और झुलसाकर पिघला देने वाले आतप को दुःख से संतप्त बिलवासी येन केन प्रकारेण सहते अवश हो सहते हुए समय को व्यतीत करेंगे। वे बिलवासी वस्त्र विहीन-नग्न रहेंगे। स्त्रियां बड़ी निर्बल होंगी।६६६।
. कुणिमाहारा सव्वे, निसायरा विगलिए रत्ति दिवसंमि । गंगा दीहर मोचा, काहिंति ततो थले मीना ।९६७) (कुणिमाहाराः सर्वे, निशाचराः विगलितयोः रात्रि दिवसयोः । गंगा द्रहान् मुक्त्वा, करिष्यन्ति ततः स्थले मीनान् ।)
वे सब कुत्सित पाहार अर्थात् मत्स्यादि जलचरों के मांस को खाने वाले होंगे। दिन तथा रात का अवमान होने पर वे लोग बिलों से निकल मछलियों को नदियों में से पकड कर दोनों नदियों के तटों पर रेती में दबा देंगे ।६६७। मेची रहिया मणुया, विंसति वासाउया दुहत्थ उच्चा पढमं । अंताम्मि सोल वासाउ, हत्युच्चा चेव होहिंति । ९६८। (मैत्रीरहिता मनुष्याः, विंशति वर्षायुष्याः द्विहस्तोच्चाः प्रथमं । अन्ते षोडशवर्षायुष्याः, हस्तोच्चाश्चैव भविष्यन्ति ।)