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[ तित्थोगाली पइन्नय
भरत क्षेत्र में गंगा एवं सिन्धु नदियां और वैताढ्य पर्वत, केवल ये तीन ही बचे रहेंगे. शेष कुछ भो अवशिष्ट नहीं रहेगा । ६१ ।
इगवीस [वास ] सहस्सा, भणिया अति दूसमा उवीरेणं । रायगिहे गुण सिलए, गोयममादीण सिस्साणं । ९६२ ।
( एकविंशति (वर्ष) सहस्राणि भणिता अति दुःषमाः तु वीरेण । राजगृहे गुणशीलके, गौतमादीनां शिष्याणाम् । )
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राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में भगवान् महावीर ने गौतम आदि गणधरों को दुष्षम दुष्षम नामक आरक की स्थिति २१००० (इकवीस हजार ) वर्ष बताई है । ६२ ।
ओपिणी उसा, कोडा कोडी उ होइ दस चेव । अवरोह अरगाण निययं, अरगा बच्चैव विक्खाया | ९६३ ( अवसर्पिणीतु एषा कोट्या कोट्यस्तु भवन्ति दश चैव । अवरोहो आरकाणां नियतः, आरकाः षड् चैव विख्याताः । )
यह अवसर्पिणो काल दश कोट्या कोटि सागर प्रमाण स्थिति वाला होता है । इसमें छह आारक विख्यात हैं । उन छहों आरकों का अवरोह ( क्रमशः होयमान उतार ) अर्थात् अपसर्पण नियत है । ६३ ।
एतो परं तु बोच्छं, उस्सप्पिणीए किचि उद्दसं ।
इगवस सहस्साणं, अई दूसम होइ वासाणं । ९६४ ।
( इतः परं तु वक्ष्ये उत्सर्पिण्याः किंचिदुद्दशम् ।
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एक विंशतिः सहस्राणां अति दुःषमः भवति वर्षाणाम् । )
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अब मैं उत्सर्पिणी काल के सम्बन्ध में थोड़ा कथन करूँगा । इसका दुष्षम दुष्षम नामक प्रथम आारक २१००० ( इकवीस हजार ) वर्ष का होता है । ६६४
दससु वि वासेसेसा, काहिति दुखाइं मणुय तिरियाणं । होही सुस्सिरा भूमी, मुम्मुर इंगाल समतावा | ९६५ ।