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________________ २८८ ] [ तित्योगाली पइन्नय उस समय के मनुष्य बड़े तीक्ष्ण एवं कठोर नखों वाले. घड़घड़ े के समान मुख तथा बोलने में अति विकट ग्रटपटे नामों वाले होंगे वे सब के सब वर्ण आदि सब गुणों से अति कर्कश और निष्ठुरातिनिष्ठुर स्वभाव वाले होंगे । ६५४॥ रवणी पमाणमेत्ता, उक्कोसेणं तू बीस सोलाउ । बहुपुत न च सहिया, निल्लज्जा विषय परिहीणा । (रत्निप्रमाणमात्रा, उत्कृष्टतस्तु विंशतिः षोडशायुष्काः । ९५५ । बहुपुत्र नप्तसहिता, निर्लज्जाः विनय परिहीनाः । ) उन मनुष्यों के शरीर की ऊंचाई एक मुण्ड हाथ की, उनकी उत्कृष्ट आयु २० अथवा १६ वर्ष की होगी। वे बहुत से पुत्रों पौत्रों और दोहित्रों के परिवार वाल े, नितान्त निर्लज्ज एव अविनीत होंगे । ६५५। fier मक्कर, भोगो, सूरपक्कमंसासी । 1 " अणु गंगा सिंधु, पव्वय बिलवासी करकम्माय । ९५६ | ( नष्ट गुहा मकर भोजिनः, सूर्यपक्व मांसाशिनः । अनु गंगा सिंधु, पर्वतबिलवासिनः क्रूरकर्माणश्च ।) ܬ ू वे गृहविहीन नरनारी मत्स्य मकरभोजी सूर्य की गरमी से पके मांस को खाने वाले गंगा एवं सिन्धु नदियों के तटों के पास की वैताढ्य पर्वत की गुफाओं में रहने वाले और बड़े ही क्रूरकर्मा होंगे । ५६ । होहिति य बिलवासी, बावचरि ते बिलाउ वेयड्ढे । उभतो तडे नदीणं, नव नव एक्के+ए कूले । ९५७ । (भविष्यन्ति च बिलवासिनः, द्वासप्तति ते बिलास्तु वैताये | उभयतो तटे नदीनां नव नव एकैक के कले ) 1 वे लोग बिलवामी ( गुहावसी) होंगे। वे बहत्तर (७२) बिल वैताढ्य पर्वत में नदियों के दोनों तटों पर होंगे । प्रत्येक तट पर नौ-नौ बिल होंगे । ५७ ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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