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________________ तित्थोगाली पइन्नय ) । २८७ होहीति सममणूण य, वैयड्ढ महानदीओ मोत्तू ण । मोत्त ण उसभकूडे , वे (चे) इयकूडे य सेसंतु ।९५१ । (भविष्यति समं अन्यूनं च, वैताढय महानदीः मुक्त्वा । मक्त्वा ऋषभकूट, चैत्य कूटं च शेषं तु ।) उस समय में इन दश क्षेत्रों की धरती वैताढ्य पर्वत, महानदियों ( गंगा-सिन्धु ), ऋषभकूट और चैत्य कूट को छोड़ कर सर्वत्र समान रूप से पूरणतः समतल हो जायेगी ।६५१। . इंगाल मुग्मुरसमा, च्छार भूया भविस्सइ धरणी । तत्तकविल्लग भता, तत्तायस जोइ भया य ।९५२। (अंगार ममुर समा, क्षारभूता भविष्यति धरणी । तप्त कवेलकमताः, तप्तायःज्योति-भता च ।) - यह धरती अग्नि स्फुलिंगों के समान, प्रतप्त कवेलक (केलु) तथा तपाये हुए लोहे की ज्योति के समान एवं क्षारभूत हो जायेगी ।९५२। धूली रेणू बहुला, घण चिक्कण कद्दमाउलाधरणी । चंकमणे य असहा, सव्वेसि मणुयजातीणं ।९५३। (धूली रेणु बहुला, घनचिक्कन कर्दमाकुला धरणिः । चङ् क्रणे च असह या, सर्वाषां मनुष्यजातीनाम् ।) उस समय धरती अत्यधिक धूलि और रेणुमयो, धने चिकने कीचड़ से भरी रहेगी। उस पर मानवमात्र के लिये चलना असह्य अर्थात् अत्यन्त कठिन होगा।६५३। मणुया खरफरुसनहा, उब्भडघड-मुहाविगडनाभा । वण्णादीहि गुणेहि य सुनिठुरतरा भवे सव्वे ९५४। (मनुष्याः खरपरुषनखा उद्भटघटमुखा विकटनाभयः । वर्णादिभिर्गुणैश्च सुनिष्ठुरतराः भवेयुः सर्वे ।)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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