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[ तित्थोगाली पइन्नय (षोडशवर्षीयाः मनुष्या, तदा मृता नप्तृपंचमुखानि द्रक्ष्यन्ति । ऊन षडवास्तु तदा प्रजायिष्यन्ति महिलाः ।)
सोलह वर्ष की उस समय को पूर्ण प्रामु भोग कर मरते समय उस समय अपने पांच दोहित्रों के मुख देख लेंगे। छह वर्ष से कुछ कम अवस्था में हो महिलाए पुत्र पुत्रियों को जन्म देंगी।६४७। छव्वरिसी गब्भधरी, होही नारीओ दुक्ख बीभच्छा। दच्छिति पुत्तनत्तु यदस, सोलसवासिया थेरा ।९४८। (षड्वर्षीयाः गर्भधराः, भविष्यन्ति नार्यः दुःखबीभत्साः । द्रक्ष्यन्ति पुत्रनप्त ञ्च दश, षोडशवर्षीयाः स्थविराः ।)
छह वर्ष की अवस्था में ही गर्भ धारण कर लेने वालो नारियां जब सोलह वर्ष की उम्र में स्थविरा (पूर्ण वृद्धा) होंगी तब वे दश पौत्र-दोहित्रों को देख लेंगी । ६४८ सोलसवासा महिला, पण सुए नतु ए य दच्छिति । एगंत दूसमाए, पुत्तपउत्तहिं परिकिण्णा ।९४९। (षोडशवर्षीयाः महिलाः, पञ्च सुतान् नप्तश्च द्रक्ष्यन्ति । एकान्त दुःषमायां पुत्रपौत्रः परिकीर्णाः ।)
दुष्षमादुष्षम नामक प्रारक में १६ वर्ष की महिला पांच पौत्र और पांच दोहित्रों को देखेंगी और वे पुत्र-पौत्रों से घिरी रहेंगी।६४६। भसुडिय रूवगुणा, सव्वे तवनियम सोय परिहीणा । उक्कोस रयणिमित्ता, मेत्तीरहिया य होहिंति ।९५०। (भसुडित रूपगुणाः, सर्वे तपनियशौच्य परिहीनाः । उत्कृष्ट (तः) रत्निमिताः, मैत्रीरहिताश्च भविष्यन्ति ।)
ग्राम शूकर तुल्य रूप और गुण वाले उस समय के वे सभो नर-नारी तप, नियम और शौच से रहित मैत्री भाव से परिहीन और एक मुण्ड हाथ की लम्बाई के शरीर वाले होंगे ।९५०।