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तित्थोगाली पइन्न ।
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जिससे यहां मनुष्यों को खांसी, श्वास. भगंदर, कुष्ठ आदि तथा अन्य अनेक प्रकार के भयंकर रोग घेरे रहेंगे ।६४३। होहिइ तिरिएय दुहा, जल थलणभ चारिणो य तिविहेवि । नासीहिति रुक्खादी, कूब तडागाणदी ओ य ।९४४। (भविष्यन्ति तिर्यञ्च दुःखिनः, जलथलनभचारिणश्च त्रिविधापि । नाशयिष्यन्ति वृक्षादयः कूप-तड़ागानधश्च .) ___जल स्थल और आकाश में विचरण करने वाले तीनों प्रकार के प्राणी तथा पशु पक्षी आदि तिर्यच बड़े दुःखी हो जायेंगे । वृक्ष, कूए, तालाब और नदियां ये सब नष्ट हो जायेंगे । ६४४। दससुवि खेते सु एवं, नर नारी हवंति नग्गाई। गोधम्मसमाणाई, तेसिं मणुयाण सुक्खाई।९४५॥ (दशस्वपि क्षेत्रेष्वेयं, नरनार्यः भवन्ति नग्नाः । गोधर्मसमानानि, तेषां मनुजानां सुखानि ।)
भरत-ऐरवत आदि दशों क्षेत्रों में उस समय नर-नारी नग्न रहते हैं। पशुधर्मा उन मनुष्यों के सुख पशुओं के सुख तुल्य होते
हैं ।६४५।
जह किर दाणिं महिला, पुत्ते जपंति जीव वाससयं । वोचिंति (तह) तया महिला, सोलसवासाउयो होह ।९४६। (यथा किलेदानी महिलाः, पुत्रान् जल्पन्ति जीव वर्षशतम् । वक्ष्यन्ति (तथा) तदा महिलाः, षोडशेवर्षायुषो भव ।)
आज के समय में जिस प्रकार महिलाएं अपने पुत्र को आशीर्वाद के रूप में कहती हैं -- सौ बरसों तक जोवो" उस प्रकार उस काल को माताएँ अपने पुत्रों को आशीर्वाद देती हुई कहेंगी-'सोलह वर्षों तक जीते रहो ।६४६। . सोलस वासामणुए, तया मया नत्तु यपण मुहे दीच्छिति । ऊणग छब्बरिसाउ, तया पयाहिति महिलाओ । .