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[ तित्योगाली पइन्नय
भसुडिय रूवगणा, विवण्णदेह-छवि-निरभिरामा । नग्गा वि गया भरणा, वीभच्छा दीह रोमनहा ।९४०। (भसुण्डित रूपगणाः, विवर्णदेहछवि निरभिरामाः । नग्नाः विगताभरणाः, वीभत्साः दीर्घरोमनखाः :) . उस समय लोग ग्रामशूकरों के समान विवर्ण एवं घृणास्पद देह वाल, नग्न, वस्त्र रहित, लम्बे-लम्बे केशों एवं नखों वाले तथा बड़े ही वीभत्स होंगे । ६४०। कुणिम सिरीसिव कदम, मुत्त पुरीसासिणो मडहदेहा । हणमिदछिंद पवरा, दोग्गतिगामी य होहिंति ।९४१। (कुणिमा सरीसृपकर्दम, मूत्रपुरीषासिनः मृतकदेहाः। . हन भेदय छेदयप्रवराः दुर्गतिगामिनश्च भविष्यन्ति ।)
वे लोग कुबड़े, सर्प, कीचड़, मूत्र और पुरीष (विष्टा) खाने वाले, मुर्दे के समान देह वाल , मारो, काटो, छेद डालो-इस प्रकार के दुष्ट वचन बोलने वाले एवं मृत्यु के पश्चात् दुर्गतिगामी होंगे ।९४१। पुणरवि अभिक्खभिक्खं, अरसं विरसं य खार खट्टच । अग्गिविस असणि सहियं, मुचहिंति मेहा जलमणि8 ९४२।। (पुनरपि अभिक्षभिक्ष, अरसं विरसं च क्षारमम्लं च । अग्नि-विष-अशनिसहितं, मुचिष्यन्ति मेघा जलमनिष्टम् ।)
बार-बार भीषण दुष्काल पड़ेंगे। उस समय बादल अरस, विरस, कडवा, खट्टा, अग्नि, विष एवं वज्र सहित अनिष्ट करें जल बरसायेंगे।९४२। जेण इहं मणुयाणं, कासो सासो भगंदरं कोड्ढो । होहिंती एवमाई, रोगा अण्णे अणेग विहा ।९४३। (येन इह मनुष्यानां, कासः श्वासो भगंदरं कुष्ठः । भविष्यन्ति एवमादयः रोगा अन्ये अनेक विधाः ।)