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________________ ४] [ तित्योगाली पइन्नप जोयण वित्थिण्णोखलु पल्लो एगाहिय-परूढाण । भरिओ असंख-खंडियकयाण बालग्ग-कोडीणं ॥११॥ (योजन-विस्तीर्णः खलु पत्यः एकाह्निक प्ररूढाणाम् । भरितअपंख्यखण्डीकृतानां बालाग्र-कोटीनाम् ।) एक योजन (४ कोस) लम्बे, चौड़े और गहरे एक पल्य (वस्तु रखने का खड्डा) को दो दिन पहले जन्मे हुए यौगलिक शिशुओं के एक एक बाल को करोड़ करोड़ अति सूक्ष्म टुकड़े कर, बालों के उन सूक्ष्मातिसूक्ष्म टुकड़ों से (दबा दबा) कर भर दिया जाय ।११॥ वाससए वाससए, एक्किक्के अवहडंमि जो कालो। सो कालो बोधव्यो, उवमा एक्कस्स पल्लस्स ॥१२॥ (वर्ष शते वर्ष शते, एककै अपहते यः कालः । स कालो बोधव्यः, उपमा एकस्य पल्यस्य ।) उस पल्य में से बाल के एक एक टुकड़े को एक एक सौ वर्षों के अन्तर से निकाला जाय । इस प्रकार उन बालों के टुकड़ों से उस पल्य के पूर्णरूपेण रिक्त होने में जितना समय लगता है, उस समय को एक पल्य की उपमा से समझना चाहिए ।१२। एतेसिं पल्लाणं कोडाकोडी हवेज दसगुणिया । तं सागरोवमस्स उ, एकस्स भवे परिमाणं ॥१३॥ (एतेषां पल्यानां कोट्या कोटिः भवेत् दशगुणिताः । तत् सागरोपमस्य तु, एकस्य भवेत् परिमाणम् ।) इस प्रकार के दश कोटाकोटि पल्योपमों का एक सागरोपम परिमाण वाला काल होता है। अर्थात् दश कोटाकाटि पल्योपम का सागरोपम काल होता है ।१३। दस कोडाकोडीए सागरनामाण हुति पुण्णाउ । ओसप्पिणीपमाणं, तहेवुसप्पिणीए वि ।१४। • पल्लो-पल्य पत्यकाबलु यत्र कापि वस्तु माध्रियते ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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