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________________ २८० ] [ तित्योगाली पइन्नय एवं परिहीयमाणे, लोगे चंदोव्वकाल पक्खम्मि । जे धम्मिया मणुस्सा, सुजीवियं जीवियं तेसि ।९२५॥ (एवं परिहीयमाने, लोके चन्द्र इव कृष्णपक्षे । ये धार्मिकाः मनुष्याः, सुजीवितं जीवितं तेषाम् ।) . इस प्रकार कृष्ण पक्ष के चन्द्र की तरह निरन्तर क्षीण होते हुए लोक (काल) में जो मनुष्य धर्माचरण करने वाले होंगे उन्हीं का जोवन वस्तुतः अच्छा जीवन कहा जायेगा ।६२५। दुस्सम सुस्समकालो, महाविदेहेण आसि परितुल्लो । सोउ चउत्थोकालो, वीरे परिनिव्वु ते छिन्नो ।९२६।. (दुःषम सुषमकालः, महाविदेहेन आसीत् परितुल्यः । स तु चतुर्थः कालः, वीरे परिनिवृते छिन्नः ।) दुःषम सुष्षम काल (जो भरत ऐरवत आदि दक्ष क्षेत्रों में था, वह), महाविदेह क्षेत्र में सदा एक ही समान रूप में प्रवर्तमान काल के तुल्य था। वह इस अवसर्पिणी काल का चतुर्थ आरक भगवान् के निर्वाण के (निम्नलिखित काल के) पश्चात् समाप्त हुआ।६२६। . तिहिं वासेहिं गतेहि, गएहिं मासेहिं अद्धनवमेहिं । एवं परिहायंते, दूसमकालो इमो जातो ।९२७। (त्रिभिर्वर्षे गतः, गतैः मासैरर्द्ध नवमैः । एवं परिहीयमाने, दुःषम काल इमो जातः । भगवान् महावीर के निर्वाण के पश्चात् तीन वर्ष और साढ़े आठ मास व्यतीत होने पर यह दुष्षम नामक पंचम आरक प्रारम्भ हुआ ।६२७। एयम्मि अइक्कते, वाससहस्सेहि एक्कवीसाए।। फिट्टिहिति लोग धम्मो, अग्गिमग्गो जिणक्खातो ।९२८ (एतस्मिन्नति क्रान्ते, वर्ष सहस्रः एकविंशत्या । स्फोटिष्यति लोकधर्म, अग्निमार्गः जिनाख्यातः ।)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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