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________________ २७४ ] | तिस्थोगाली पइन्नय गामा मसाण भूया, नयराणि य पेयलोय-सरिसाणि । दास समाय कुडुबी, जमदंडसमा य रायाणो ।९०३। (ग्रामाः श्मशानभृताः, नगराणि च प्रतलोक सदृशानि । दास समाश्च कुटुम्बिनः, यमदण्डसमाश्च राजानः ।) उस समय के ग्राम श्मशान के समान और नगर प्रतलोक के समान भयावह, गृहस्थ दास के समान दीन और राजा लोग साक्षात् यमदण्ड के समान उत्पीड़क होंगे ।०३। रायामच्चे भिजाया, भिच्चा जणवएसु य रायाणो । खायंति एक्कमेक्कं, मच्छा इव दुब्बले बलिया ।९०४। (राजामात्याभिजाताः, भृत्याः जनपदेसु च राजानः । खादन्ति एकमेकं, मत्स्या इव दुर्बलान् बलिनः ।) उस समय जनपदों में राजामात्य, अभिजार कुल के लोग. राजभृत्य और राजा परस्पर एक दूसरे को इस प्रकार खायेंग जिस प्रकार कि बलवान् मच्छ अपने से दुर्बल मत्स्यों को खाते हैं । ६ ०४।' जे अंता ते मज्झा, मज्झा य कमेण होत्ति णं चत्ता । ' अपडागा इव नावा, डोल्लंति समंततो देसा ।९०५। (ये अन्त्याः[अन्त्यजाः]ते मध्याः, मध्याश्च क्रमेण भवन्ति ननु त्यक्ताः। अपताका इव नौः, दोलयन्ति समन्ततः देशे ।) ___ जो लोग अन्त्य अर्थात् सब से हीन हैं वे मध्यम वर्ग के होंगे और जो मध्यम वर्ग के हैं वे क्रमशः परित्यक्त होंगे। समुद्र में पड़ो बिना पाल की नाव के समान लोग देश में इधर से उधर भटकते रहेंगे।६०५॥ पगलित गो महिसाणं, उत्चच्छाणं पलायमाणाणं । अजहन्निया पवित्ती, उक्कक्खाणं जणवयाणं ।९०६। प्रगलित गौ महिषाणां, उत्त्रस्तानां पलायमानानाम् । अजघन्या प्रवृत्तिः, उत्कक्षानां जनपदानाम् ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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