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तित्थोगाली पइन्नय ]
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उस समय के साधु गुरुकुलवास (गुरु की आज्ञा में रहने) एवं श्रमण धर्म के पालन में मन्दरुचि तथा मन्दबुद्धि होंगे। यह वह काल होगा जिसमें मुण्डितों की संख्या अधिक पर सच्चे साधुओं की संख्या प्रति स्वल्प होगी |८
रहगाव जास सत्थो, गोयमादीण वीर कहियो उ । कप्पद मसीहा विय, तित्थोगालीए दिता । ९०० ॥ (tent' येषां शास्त्रः गौतमादीनां वीरकथितस्तु ।
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कल्पद्र ुम सिंहावपि च, तीर्थोद्गालिके दृष्टान्तौं ।)
भगवान् महावीर ने गौतम आदि गणधरों को शास्त्र और साधु का सम्बन्ध रथ ं एवं वृषभ तुल्य बताया है । तीर्थोद्गारी में साधु को कल्पवृक्ष और सिंह की उपमा दी गई है । ६०० लुद्धाय साहुवग्गा, संपतिओप्पालमूयगा बहुगा ।
अलिय वयणं च परं धम्मो य जितो अहम्मेण । ९०१ | (लुब्धाश्च साधुवर्गाः, संप्रति वप्रालमोचकाः बहुकाः । अलीकवचनं च प्रचुरं धर्मश्च जितोऽधर्मेण । )
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उस समय में साधु लोभी और श्रमण मर्यादा को तोड़ने अथवा छोड़ने वाल े बड़ी संख्या में होंगे । उस समय सर्वत्र असत्य वचन का प्राचुर्य होगा और अधर्म द्वारा धर्म को जीत लिया जायेगा ।०१।
सुद्दा य पुहविपाला, पयति ओप्पाल्लमूयगा बहुला । अलियवयणं च पउरं, धम्मो य जितो अहम्मेण । ९०२ । (शूद्राश्च पृथ्विपालाः, प्रकृति वप्रालमोचकाः बहुलाः । अलीकवचनं च प्रचुरं, धर्मश्च जितोऽधर्मेण । )
उस समय शूद्र राजा होंगे और प्रकृति अर्थात् प्रजा वप्राल अर्थात् मर्यादाओं के प्राकार (पाल) को तोडने वाली होगी । असत्य भाषण का प्राचुर्य होगा और धर्म का स्थान अधर्म ग्रहण कर लेगा |०२|
१ रथगी- रथ- वृषभतुल्यो सम्बन्धः द्वादशांग्या साद्ध गरणीनाम् ।