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________________ २६८ ] [ तित्योगाली पइन्नय तीर्थंकर काल में भारत वर्ष ऋद्धि से भरपूर - समृद्ध, अनेक अतिशयों से सम्पन्न, देवलोक के समान और गुणों से भरा पूरा था । ५८१| गामानगरब्भूया, नगराणि य देवलोय सरिसाणि । रायसमा य कुटुंबी, वेसमण समा य रायाणो । ८८२। ( ग्रामाः नगरभूताः, नगराणि च देवलोक सदृशानि । राजसमाश्च कुटुम्बिनः, वैश्रवणसमाश्च राजानः ।) उस समय भारत के ग्राम नगरों के तुल्य नगर देवलोक के समान, गृहस्थ राजा के समान और राजागरण वैश्रवण के समान सर्वतः सम्पन्न थे । ८८२ चंद समा आयरिया, अम्मापियरो य देवत समाणा । मायसमाविय सासू, ससुराविय पितिसमा आसी ।८८३ ( चन्द्रसमा आचार्या, अम्बापितरौ च दैवतसमानाः । मातासमापि च श्वश्रूः श्वशुरा अपि च पितृसमा आसन् ।) आचार्य गण चन्द्रमा के समान सौम्य शीतल एवं ज्ञान का प्रकाश करने वाले माता-पिता देव-दम्पती तुल्य, सासें माताओं के समान और श्वसुर पिता के समान थे । ८८३ | · धम्मा धम्मविहिन्नू, विणयण्णू सव्वसोय संपण्णो । गुरुसाहू पूणरतो, सदारनिरतो जो तहया | ८८४ | (धर्माधर्म विधिज्ञः, विनयज्ञः सत्यशौचसंपन्नः । गुरुसाधुपूजनरतः स्वदारनिरतः जनस्तदा । ) उस समय के मनुष्य धर्म तथा अधर्म की विधि के ज्ञाता, विनोत, सत्य- शौच सम्पन्न, गुरु एवं साधु की पूजा सत्कार में सदा तत्पर और स्वदार-संतोषी होते थे ८८४ | 1 अच्छय सविण्णाणो, धम्मे य जणस्स आयरो तहया । विज्जा पुरिसा पुज्जा, धरिज्जर कुलं च सीलं च । ८८५ |
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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