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________________ २६६ ] [ तित्थोगालो पइन्नय धमतीर्थ के अन्तिम सदस्य होंगे। दुःषम आरक के अस्तंगत होते ही चतुर्विध तीर्थ का भी अस्तमन हो जायेगा ।८७४। तेसु य काल गतेसु, तदिवसं चेव होही अधम्मो । इय दूसमाए काले, वच्चंते पाव भूइडे । ८७५। (तेषु' च काल गतेषु, तदिवसे चैव भविष्यति अधर्मः । . अस्या दुष्षमायाः काले, व्यतीते पापभूयिष्ठो ।) इसपाप प्रधान अथवा पापाधिक दुःषम नामक पंचम पारक के जाते (समाप्त होते) समय साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविकाउन चारों के दिवंगत होते ही, उसी दिन से भरत क्षेत्र में अधर्म का आधिपत्य हो जायेगा।८७५। सामाइय समणाणं, महाणुभावाण चेइयायारो। सव्वाय गंधजुत्ती दोसुवि, सज्झाएमु [दससुवि खेतेसु] नासिहिति ८७६। (सामायिकं श्रमणानां, महानुभावानां चैत्याचारः। सर्वा च गंधयुक्तिः दशस्वपि क्षेत्रेषु नश्ययिष्यति ।) श्रमणों की सामायिक, महानुभावों ( श्रद्धालुओं) का चैत्याचार, और सब प्रकार की गन्ध युक्ति दशों ही क्षेत्रों में नष्ट हो जायेगी।८७६। चंकमि वरतरयं नरतिरियं, तिमिसगुहाए तमंधयाराए । न य तइया मणुयाणं, जिणवरतित्थे पणट्ठम्मि ।८७७१ [युग्मम् (चंकमितु नरतियचं तमिनगुहायां तमोऽन्धकारायाम् । न च तदा मनुष्याणां२, जिनवर तीर्थे प्रणष्टे ।) मान और तिर्यंच अन्धकार पूर्ण तमिस्र गुफा में रहने लगेंगे उस समय जिनेन्द्र भगवान के तोर्थ का त्यूच्छेद हो जाने के कारण मनुष्यों में उपर्युल्लिखित सामायिक आदि धर्माचार नहीं होंगे ।८७७। १ तेषु-दुःप्रसहादिषुचतुर्यु --इत्यर्थः । २ सामायिका दि इति शेषः ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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