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तित्थोगाली पइन्नय ]
. [ २६३ (राजाज्ञा-दंडधर, औषधिअग्निश्च संयता चैव ।। चरम दिवसावसाने, अनुसज्जिता न भविष्यन्ति ।)
राजाज्ञा का पालन कराने वाला, वनस्पति, अग्नि और संयम-यम-नियम आदि के पालक-ये पंचम आरक के अन्तिम दिवस की अवसान वेला में भरत क्षेत्र में विद्यमान नहीं रहेंगे।८६५। पुयाए संझाए, वोच्छेदो इगवीस सहस्साई बासाणं । वीरमोक्ख गमणाओ, अवोच्छिन्नं होही अवस्सगं जाव तित्थं तु
८६६। (पूर्वायां संध्यायां, विच्छेद एकविंशतिः सहस्राणि वर्षाणाम् । वीरमोक्षगमनात्, अव्युच्छिन्नं भविष्यति आवश्यकं यावत् तीर्थंतु।)
आवश्यक सूत्र भगवान महावीर के धर्म तीर्थ की विद्यमानता पर्यन्त विद्यमान रहेगा। वीर निर्वाण के इकवीस हजार (और ३ वर्ष एवं साढ़े आठ मास) वर्ष पश्चात् आवश्यक सूत्र का व्युच्छेद होगा।८६६।
[आहोर नगरस्य "श्री राजेन्द्र सूरि शास्त्र भण्डार' से प्राप्त प्रति में यह गाथा उल्लिखित नहीं है ।] इगवीस सहस्साई, वासाणं वीरमोक्ख गमणाओ। अणुओगदार नंदी, अवोच्छिन्ना उ जा तिथ्थं ।८६७। (एक विंशतिसहस्राणि, वर्षाणां वीरमोक्षगमनात् । अनुयोगद्वार नन्दी, अव्युच्छिन्नाः तु यावतीर्थम् ।)
तीर्थ की विद्यमानता तक अनुयोग द्वार और नन्दिसूत्र अविच्छिन्न रहेंगे ! भगवान महावीर के निर्वाण से इकवीस हजार वर्ष (तीन वर्ष और साढे आठ मास इन में और मिलाने चाहिए) पश्चात् इनका विच्छेद होगा ।८६७। सामाइयत्थ पढमं, छेदोवट्ठावणं भवे बीयं । एते दोन्नि चरित्ता, होहिंति जाव तित्थं तु ।८६८।