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________________ २६२ ] [ तित्थोगाली पइन्नय दुःप्रसह प्राचार्य सौधर्म कल्प के सागर नामक विमान में उत्पन्न होगा और वहां से च्यवन कर वह धीर वीर पाठों कर्मों की रज को दूर कर सिद्धगति को प्राप्त करेगा ।८६१। पढमाए पुढवीए, उप्पणो विमलवाहणो राया । सोहम्मे उववण्णं, सावगमि हुणं च समणी य ।८६२। (प्रथमायां पृथिव्यां, उत्पन्नः विमलवाहनो राजा। . . सौधर्मे उत्पन्न, श्रावकमिथुनं च श्रमणी च ।) ___ राजा विमलवाहन प्रथम नरक में उत्पन्न होगा। फल्गु श्री साध्वी, नाइल श्रावक और सर्वश्री श्राविका.--ये तीनों. सौधर्म कल्प में उत्पन्न होंगे ।८६२। वासाण सहस्सेहि य, एकवीसाए इहं भरहवासे । दसवेतालिय अत्थो, दुप्पसह जइ म्मि नासिहिति ।८६३। (वर्षाणां सहनश्चैकविंशत्या इह भारतवर्षे । दशवैकालिकार्थः, दःप्रसभ यत्यौ नक्ष्यति ।) इकवीस हजार (२१,०००) वर्ष के इस दुःषम नामक पंचम आरक के अन्त में दुःप्रसह यति के स्वर्गगमन के साथ ही यहां भरतक्षत्र में अर्थ सहित दश-वैकालिक सूत्र नष्ट हो जायेगा ८६३। पुयाए संझाए, वोच्छेदो होइ धम्म चरणम्स । मज्झण्हे रातीणं. अवरण्हे जायते जस्स ।८६४। (पूर्वायां संध्यायां, व्युच्छेदः भविष्यति धर्मचरणस्य । मध्याह्न राज्ञां, अपराह्न जाततेजसः ) पंचम प्रारक की समाप्ति की पूर्व संध्या में धर्माचरण का, मध्याह्न बेला में राजाओं (अमात्य सहित राजा) अर्थात् राजसत्ता का और अपरालू की बेला में अग्नि का अन्त होगा ।८६४। रायाणादंडधरो, उसही अग्गी य संजया चेव ।। चरम दिवसावसाणे, अणु सज्जित्ता न हो हत्ति ।८६५।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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