SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 281
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५४ ] तिस्थोगाली पइन्न आठ वर्ष की अवस्था में वह दुःप्रसह, आचार्य नाइल से देवलोकों के सुखों के सम्बन्ध में सृन कर, उन पर चिन्तन करता हुआ आचार्य नाइल के पास श्रमरण धर्म में प्रव्रजित हो जायगा।८३३। सो पव्वइतो संतो, महया जोगेण सुंदरुज्जोगो। कम्मक्खतोवसमियं, सिक्खिही सुतं दसवेतालं '८३४. (स प्रवजितः सन् महता योगेन सुन्दरोद्योगः । कर्मक्षयोपशमिकं, शिक्षिष्यति सूत्रं [श्रुतं] दशकालिकम् ।) . श्रमण धर्म में दीक्षित होने के पश्चात् श्रमण दुःप्रसह बड़ी तन्मयता के साथ अहर्निश परिश्रम कर ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोप. शम के फलस्वरूप दशकालिक सूत्र का अध्ययन करेगा उसे कण्ठस्थ करेगा ।८३४। दसवेतालियधारी, पुज्जिही जणेण जहब दसपुब्बी । सो पुण सुट्ठतरागं, पुज्जिही समण संघेणं ८.३५ (दशवकालिकधारीः पूजयिष्यते जनेन यथैव दशपूर्वी । स पुनः सुष्टुतया, पूजयिष्यते श्रमणसंघेन ।) उस समय दशवकालिक सूत्र को कण्ठस्थ करने वाला श्रमण लोगों द्वारा दश-पर्वधर के समान पूजित-सम्मानित होगा। श्रमणसंघ भी दश वैकालिकधारी मुनि का भलीभांति पूजा-- सम्मान करेगा।८३५। । अउणा वीससहस्सो, सामाणिओ होहिति सक्कयालोए । दुस्सह दूसमकाले, खीणे अप्पावसेसजुगे ।८३६। (अऊन [अन्यून] विंशतिसहस्रः, सामानिकः भविष्यति शक्रस्य लोके । दुस्सहे दुःषमाकाले, क्षीणे अल्पावशेष युगे ।) दुःसह्य कष्ट पूर्ण दुःषम नामक पांचवें प्रारक की समाप्ति में जब कुछ ही घड़ियां शेष रह जायेंगी, उस समय दुःप्रसह आचार्य शक्रलोक अर्थात् सौधर्म कल्प नामक प्रथम देवलोक में अन्यून बीस हजार देव परिवार वाले सामानिक देव के रूप में उत्पन्न
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy