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________________ तत्थोगाली पइन्नय] [ २५१ सो किर आयारधरो, अपच्छिमो होहीति भरहवासे । तेण समं आयारो नस्सिही समं चरित्तेणं |८३२। (स किल आचारधर, अपश्चिमः भविष्यति भारतवर्षे । तेन समं आचार, नक्ष्यति समं चारित्रोण ।) .. वे भरत क्षेत्र में अन्तिम आचारांगघर होंगे उनके निधन के साथ ही चारित्र सहित आचारांग पूर्णतः नष्ट हो जायगा ८२३। अणुओगच्छिण्णायारो, अह समणगणस्स दीविवायारो । आयारम्मि पण?, होहीति तइया अणायारो ।८२४।। (अनुयोगच्छिन्नाचार, अथ श्रमणगणस्य दीपेवाचारः । आचारे प्रणष्टे, भविष्यति तदा अनाचारः ). ____ अनुयोग सहित आचारांग ही श्रमण गण को प्रदीप के समान आचार का बोध कराने वाला है अतः आचारांग के प्रष्ट हो जाने पर भरत क्षेत्र में सर्वत्र अनाचार का साम्राज्य व्याप्त हो जायगा।८२४॥ चंकमिउं वरतरं, तिमिसगुहाए तमंधकाराए । न य तइया समणाणं, आयार-सुत्ते पणट्ठमि ८२५। (चंक्रम्य परतरं, तमित्रगुहायां तमोऽधकारायां । न च तदा श्रमणानां, आचारसूत्रे प्रणष्टे ) तदनन्तर आगे चल कर सब लोग घोर अन्धकारपर्ण तमिस्र गुफा में ही रहेंगे। प्राचारांग सूत्र के नष्ट हो जाने पर श्रमणों का नाममात्र भी अवशिष्ट नहीं रहेगा ।२५। निज्झीणा पाषंडा, घोरेहिंजणो विलुप्पते अहियं । होहिंति तया गामा, केवल नामाव सेसाउ ।८२६। (निहींणाः पाषण्डा, चौरैर्जनः विलुम्प्यते अधिकम् । भविष्यन्ति तदा ग्रामाः केवलं नामावशेषास्तु ।).
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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