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________________ २५० । | तित्थोगाली पइन्नय वीर निर्वाण सं० उन्नीस सौ (१६००) में भारद्वाज गोत्रीय महाश्रमण नाम से विख्यात श्रमण के निधन पर सूत्रकृताङ्ग का विच्छेद (ह्रास) होगा ।८१६। . वरिस सहस्सेहि इहं दोहि, विसाहे मुणिम्मि वोच्छेदो। वीर जिण धम्मतित्थे, दोहि तिन्नि सहस्स निद्दिट्ठो' ।८२० वर्ष सहस्रौरिह द्वाभिः विशाखे मुनौ व्यवच्छेदः । . . वीरजिन धर्मतीर्थे , द्वि त्रि सहस्र निर्दिष्टः ।) वीर निर्वाण सं० दो हजार (२०००) में तथा वीर निर्वाण पश्चात् दो हजार से तीन हजार वर्षों के बीच भी भगवान महावीर के धर्म तीर्थ में कतिपय सूत्रों के व्यवच्छेद (ह्रास) का निर्देश किया गया है '८२०। विण्हु मुणिम्मि मरते, हारित गोत्तम्मि होति वीसाए। . वरिसाण सहस्सेहिं, आयारंगस्स वोच्छेदो ।८२१। (विष्णु मुनौ मृते. हारित गोत्र भवति विंशतिभिः । वर्षाणां सहस्रः, चाराङ्गस्य विच्छेदः ।) वीर निर्वाण सं० २०,००० (बीस हजार) में हारित गोत्रीय विष्णु नामक मुनि का निधन होते ही आचारांग का व्यवच्छेद (ह्रास) हो जायगा ।।२१।। अह दुसमाए सेसे, होही नामेण दुप्पसह समणो । अणगारो गुणगारो, खमागारो तवागारो ।८२२। (अथ दुःषमायां शेषे. भविष्यति नाम्ना दुःप्रसहः श्रमणः । अनगारः गुणागारः, क्षमागार तपागारः ) __ तदनन्तर दुषमा नामक पंचम आरक का थोड़ा सा समय अवशिष्ट रहने पर क्षमा, तप तथा गुणों के भण्डार दुःप्रसह नामक अरणगार होंगे।८२२।। अस्यां गाथायां विच्छिन्नमानस्य न कस्यचिदप्यंगस्य नामोल्लेख; कृतः । प्रतोऽनुमीयते यत समुच्चयरूपेण कतिपयाङ्गानां ह्रासस्यैवात्रोल्लेख: कृतोऽस्ति।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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