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________________ तित्थोगाली पइलय । . [ २४६ तेरस वरिस सतेहिं , पण्णास समहिएहिं वोच्छेदो । अज्जव जतिस्स मरणे. ठाणस्स जिणेहिं निहिहो ।८१६। (त्रयोदशवर्षशतैः, पञ्चाशतसमधिकर्व्यवच्छेदः । आर्जव यतेः मरणे, स्थानस्य [स्थानांगस्य] जिनैर्निर्दिष्टः ।) वीर निवारण के १३५० (तेरह सौ पचास) वर्ष पश्चात् आर्जव यति के मरने पर स्थानांग सूत्र का व्यवच्छेद अर्थात् ह्रास जिनेश्वर ने बताया ।८१६। चोदस वरिस सतेहिं, वोच्छेदो जिट्ठभति समणमि । कासवगुत्ते णेओ, कप्प ववहार सुत्तस्स ८१७' - (चतुर्दश वर्ष शतैः, व्यवच्छेदः ज्येष्ठभूतिश्रमणे । · काश्यपगोत्रे शेयः, कल्पव्यवहारसूत्रस्य ।) वीर निर्वाण के चौदह सौ (१४००) वर्ष पश्चात् काश्यप गोत्रीय ज्येष्ठभूति नामक श्रमण में कल्पव्यबहारसूत्र का ह्रास होगा, यह जानना चाहिए।८१७ भणिदो दसाण छेदो, पनरम सएहि होइ वरिसाणं । समणम्मि फरगुमित्ते, गोयमगोत्ते महासत्त ८१८। (भणितः दशानां छेदः पञ्चदशशतैर्भवति वर्षाणाम् । श्रमणे फल्गुमित्र. गौतम गोत्रो महासत्त्वे ।) . वीर निर्वाण के पन्द्रह सौ (१५००) वर्ष पश्चात् गौतम गोत्रीय महासत्त्वशाली श्रमण फल्गृमित्र के निधन पर दशाभुत स्कन्ध का विच्छेद (ह्रास) बताया गया है ।८१८॥ भारदायसगोत्ते, सूर्यगडंगं महासमण-नामे । अगुणब्बीससतेहि, जाही वरिसाण वोच्छित्ति ।८१९। भारद्वाज-सगोत्रो, सूत्रकृताङ्गस्य महाश्रमण नाम्नि । एकोनविंशशतः, यास्यति वर्षव्यवच्छित्तिः ।)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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