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(पञ्चाशत् वर्षैश्च द्वादशवर्षशतैर्ध्य वछेदः ।
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दिन [ दत्त ] गणि पुष्यमित्रः सविवाहानां पढंगानाम् । )
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[ तित्योगालो पइन्नय
वीर निर्वाण के १२५० वर्ष पश्चात् दिन्न गणि पुष्यमित्र में विवाहपत्ति सहित छ ः अंगों का व्यवच्छेद हो जायगा ।८१२।
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नामेण समित्तो. समणोसमणगुण निउण चिंवतिओ । होही अपच्छिमो किर, वियाह सुयधारको वीरो ।८१३ | ( नाम्ना पुष्यमित्रः, श्रमणः श्रमणगुणनिपुणचिन्तयिता । भविष्यति अपश्चिमः किल विवाहश्र तधारकः वीरः ।)
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श्रमण गुणों का चिन्तक एवं श्रमरण गुणों में निपुण पुष्यमित्र नामक वीर श्रमरण पूर्ण वियाह- पण्णत्ति ( व्याख्या - प्रज्ञप्ति ) सूत्र का धारक होगा ।८१३'
तम्मिय वियाहरुक्खे, चुलसीति पयसहरुसगुण कलिओ [ए] । सहसंच्चिए संभंतो, होही गुण निष्फलो लोगो ८१४ । (तस्मिन् व्याख्या वृक्षे [ व्याख्याप्रज्ञप्ती] चतुरसीति, पदसहस्रगुणकलिते ।
सहसा अंचिते [संकुचिते] सम्भ्रान्तः, भविष्यति गुण निष्फलो लोकः ।)
उस ५४००० (चौरासी हजार) पदों वाले गुरणों से भरे व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग रूपी कल्प वृक्ष का ह्रास होने पर गुरण रूपी फल से वंचित हुए लोग सहसा संभ्रान्त हो जायेंगे । - १४ |
समवाय- ववच्छेदो, तेरसहिं सतेहिं होहिति वासाणं ।
माढर गोत्तस्स इहं, संभूतजतिस्स मरणम्मि | ८१५ । (समवाय व्यवच्छेदः त्रयोदशभिर्शतैः भविष्यति वर्षाणाम् । माढर गोत्रस्य इह, सम्भूत यतेर्मं रणे ।)
वीर निर्वाण के १३०० वर्ष पश्चात् माढरगोत्रीय संभूत नामक यति (श्रमण ) के मरणोपरान्त चतुर्थ प्रांग समवायांग सूत्र का व्यवच्छेद अर्थात् ह्रास होगा । ८१५ |