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________________ तित्थोगाली पइन्नय ] [ २४३ नन्दराज ने कहा - "धीर ! आपको अपने अभीप्सित का लाभ हो। अब आप के मार्ग में कोई अवरोध नहीं है तदनन्तर स्थूलभद्र "बाढम्” -कह कर राजभवन से प्रस्थान कर गया ७६४। ܙܙ ( यह गाथा आहोर नगरस्थ राजेन्द्रसूरि ग्रन्थ भण्डार' से उपलब्ध प्राचीन प्रति में उल्लिखित नहीं है ) अह भणइ नंदराया, वच्चइ गणियाघरं जइ कहिंचि । तो तं असच्चवादीं, तीसे पुरतो विवामि । ७९५ । ( अथ भणति नन्दराजा, व्रजति गणिका गृहं यदि कथंचित् । ततः तं असत्यवादी, तस्याः पुरतः व्यापादयामि | ) स्थलभद्र के चल े जाने के पश्चात् मगध सम्राट् नन्द ने कहा --- यदि यह कदाचित गणिका के घर की ओर जाता है तो मैं " इस असत्यवादी को उस गणिका के सम्मुख ही मार डालूं गा ॥७६५। सो कुलघरस सिद्धिं गणियघर संतियं च सामिद्धिं । पाएण पणोल्लेड, णातिणगरा अणवयक्खो । ७९६। ( स कुलगृहस्य सिद्धिं गणिकागृह संचितां च समृद्धिम् । पादेन प्रणोद्य याति नगरात् अनपेक्ष: 1) 1 स्थूलभद्र अपनी कुल परम्परागत सिद्धि और कोशा गरिणका के घर में संचित समृद्धि को पैरों से ठुकरा कर निस्पृह - निरपेक्ष भाव से नगर से बाहर चला जाता है।७६६' जो एवं पव्वइओ एवं सज्झाय झाणउज्जुतो । * गारवकरण हिओ, सीलभरुव्वद्दणधोरेओ । ७९७ ( य एवं प्रब्रजित, एवं स्वाध्यायध्यान उद्य क्तः । गारवकरणेन हितः शीलभरोद्वहनधौरेयः । ' जो इस प्रकार प्रव्रजित हुआ और इस प्रकार स्वाध्याय एवं ध्यान में उद्यत रहा, वही शील के भार को वहन करने में अग्रणी स्थूलभद्र गारव करने के कारण श्रुत के प्रति अपराध कर हानि में रहा ।७६७।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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