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________________ तित्थोगाली पइन्नय ]. [ २३५ सो वि य पागडदंत, दक्खिय सियकमल सप्पहं हसिउं । भणइय गारवयाए, सुय इड्ढी दरिसीया य मए ७६६। (सोऽपि च प्रकटदन्तं, द्रक्ष्य सितकमल सप्रभ हसित्वा । भणति च गारवतया, श्रु तद्धिः दर्शिता च मया ।) स्थूल भद्र ने हंस कर श्वेत कमल के समान प्रभा वाले अपने दांतों को दिखाते हुए गर्व के साथ कहा ..' वह तो मैंने श्रु त ऋद्धि प्रदर्शित की थी ७६६। तं वयणं सोऊणं, तातो अंचिय तणरुहसरीरा। पुच्छंति पंजलिय उडा, वागरणत्थे सुणिऊणत्थे ।७६७। (तद्वचनं श्रुत्वा. तास्तु अंचिततनूरुहशरीराः । पृच्छन्ति प्राञ्जलिक पुटाः व्याकरणार्थान् सुनिपुणार्थान् ।) ... अपने भाई के वचनों को सुन कर हर्षातिरेक से उनके शरीर के रोंगटे खड़े हो गए। तदनन्तर वे सातों साध्वियां हाथ जोड़ कर स्थूलभद्र से व्याकरण (प्रश्न व्याकरण सूत्र) के अति सुन्दर गूढार्थ पूछने लगीं ।७६७ इयरोविय भगिणीओ, विसज्जिउण थूलेभद्द रिसी । उचियंमि देसकाले, सज्झायमुवट्ठिओ काउं।७६८। (इतरोऽपि च भगिन्यः, विसर्जयित्वा स्थूलभद्र ऋषिः । उचिते देशकाले, स्वाध्यायमुपस्थितः कर्तुम् ।) . तदनन्तर स्थूलभद्र ऋषि अपनी बहिनों को विदा कर समुचित समय पर वाचना ग्रहण करने भद्रबहु की सेवा में उपस्थित हुए।७६८। अह भणइ भद्दबाहु, अणगार अलाहि एत्तियं तुब्भं । . परियट्टतो अच्छसु, एचियमेत्तं वियत् भे १७६९। (अथ भणति भद्रबाहू, अनगार ! अलं हि इयत् तुभ्यम् । परावर्तयम् आस्व, इयत् मानं व्यक्त भो ।)
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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