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________________ २३२ ] [ तित्थोगाली पइन्नय (यक्षा च यक्षदिन्ना, भूना तथा भवति भृतदिना च । सेना वेना रेना, भगिन्यः स्थूलभद्रस्य ।) यक्षा, यक्षदिन्ना, भूता, भूतदिन्ना, सेरणा, वेणा और रेणा-.. ये स्थलभद्र की सात बहिनें थीं।७५५। एया सत्तजणीओ, बहुस्सुया नाणचरणसंपन्ना । . . सगडालबालियातो, भाउ अवलोइङ एंति ७५६। (एताः सप्तजनाः बहुश्रु ताः ज्ञानचरणसम्पन्नाः । शकटालबालिकाः भ्रातरमवलोकितु आयान्ति ।) ज्ञान और चरण अर्थात् क्रिया से सम्पन्ना तथा बहुश्रुता ये शकडाल की सातों पुत्रियां अपने भाई स्थूलभद्र को देखने के लिये उद्यान में पहुंचती हैं १७५६। ता वंदिऊण पाएसु, महबाहुस्स दीहबाहुस्स । पुच्छंति य भाउ णे, कत्थगओ थूलभदोत्ति ।७५७. (ताः वन्दित्वा पादयोः, भद्रबाहोः दीर्घबाहोः । . पृच्छन्ति च भ्राता नः, कुत्र गतः स्थूलभद्र इति ।) वे सातों साध्वियां प्रलम्बभुज भद्रबाहु के चरणों में नमन कर उनसे पूछती हैं..."भगवन् ! हमारे भ्राता स्थूलभद्र कहां गये हैं ?" १७५७। अइ भणइ भद्रबाहू, सो परियति शिवघरे' अंतो । वच्चह तहिं विदच्छिह, सज्झायज्झाण उज्जुत्तं १७५८। (अथ भणति भद्रबाहुः, स परिवर्तयति शिवगृह अन्तः । व्रजत तत्र विद्रक्ष्यथ, स्वाध्यायध्यान उद्युक्तम् ।) १ शिवघरे-- शून्यमृहे-इत्यर्थः ।
SR No.002452
Book TitleTitthogali Painnaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay
PublisherShwetambar Jain Sangh
Publication Year
Total Pages408
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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