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। तिस्थोगाली पइन्नय श्रमण संघाटक के इस कथन पर अपयशभीरु, यशस्वी एवं धैर्यशाली भद्रबाहु ने कहा--- "मैं एक स्थिति में अर्थात् एक शर्त पर वाचना देना चाहता हूं--७३४।। अप्प? आउत्तो, परमट्ठ सुट्ट दाणि उज्जुत्तो । न विं हं वाहरियव्यो, अहं पि न विवाहरिस्सामि १७३५। (आत्मार्थे आयुक्तः, परमार्थे सुष्ठु इदानी उद्युक्तः । नाप्यहं व्याहर्त्तव्यः अहमपि न विव्याहरिष्यामि ।)
आत्मकल्याण में संलग्न तथा परमार्थ में इस समय अच्छी तरह उद्यत मुझे न तो कोई अन्य कुछ कहे और न मैं ही किसी को । कुछ कहूंगा।७३५॥ पारिय काउसग्गो, भट्टितो व अहव सज्झाए । नितो व आइंतो वा, एवं भे वायणं दाहं ७३६। (पारित कायोत्सर्गः, भक्तास्थितो वाथवा स्वाध्याये (शय्यायाम्) । गच्छन वा आगच्छन् वा एवं भवतां वाचनां दास्यामि ।)
कायोत्सर्ग के पारण के पश्चात् भोजनार्थ बैठा हुआ, अथवा स्वाध्याय में निरत, कहीं जाता हुआ अथवा कहीं पाता हुआ-- मैं वाचनाएं दूंगा ।७३६।। बाढं चि समणसंघो, अम्हे अणुमत्तिमो तुहं छंदं । देहि य धम्मो वाहं, तुम्हं छदेण हिच्चामो ।७३७। (वाढं ! इति श्रमणसंघः, वयमनुमन्यामहे तव छंदम् । देहि य धर्मे वाहं त्वां छन्देन जहिमः ।
___ श्रमण संघ के प्रतिनिधि संघाटक ने कहा-- 'बिल्कुल ठीक है, हम आपके इस छंद (शर्त) को स्वीकार करते हैं। आप धर्म को प्रवाह दीजिये अर्थात् वाचनाएं दीजिये । हम आपको सब प्रकार के छंद (शर्त) से मुक्त करते हैं ।७३७।
२ सेज्जाए-(शय्यायां) इति पाठान्तरमप्युपलभ्यते ।