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तित्योगालो पइन्नय ]
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(कत्यपि विराधनाभीरुभिरतिभीरुभिः कर्मणाम् । श्रमणैः संश्लिष्टानि, प्रत्याख्यातानि भक्तानि ।)
अनेक धर्मभीरु साधुओं ने इस डर से कि कहीं उनके विशुद्ध संयम में किसी प्रकार का दोष न लग जाय अथवा कर्मबन्ध न हो जाय, अशनपानादि का प्रत्याख्यान कर अति कठोर आजीवन अनशन का व्रत ग्रहण कर लिया ७१७॥ वेयड़ ढकंदरासु य नदीसु सेढीसमुद्दकूलेसु । इहलोग अपडिबद्धाय, तत्थ जयणाए वदति ।७१८॥ (वैताढ्यकंदरासु च नदीसुश्रोणि समुद्रकुलेषु । इहलोके अप्रतिबद्धाश्च, तत्र यत्नया वर्तन्ते ।) — कतिपय साधु वैताढ्य की कन्दरामों में, कतिपय महा नदियों के तटवर्ती प्रदेशों में, कतिपय साधु पर्वत श्रेणियों की तलहटियों में तथा अनेक साधु समुद्र के तटवर्ती प्रदेशों में चले गये। इस लोक तथा अपने शरीर तक से निस्पृह निलिप्त एवं उदासीन हो उन क्षेत्रों में बड़ी सावधानी और यतना पूर्वक विचरण करने लगे । ७ १८ ते आगया सुकाले, सग्गगमण सेसया ततो साहू । बहुयाणं वासाणं, मगहा विसयं अगुपत्ता ७१९। (ते आगताः सुकाले, स्वर्गगमनावशेषकाः ततः साधवः । बहुभिर्वर्षे, मगध विषयमनुप्राप्ताः ।)
अनेक वर्षों पश्चात् सुकाल होने पर स्वर्गगमन से शेष बचे जो साधु थे वे मगध प्रदेश में पुनः प्राये ।७१६। ते दाई एक्कमेकं, मय सेसा चिरं य दट्टणं । परलोगगमण पच्चागयव्व, मण्णंति अप्पाणं ।७२०। (ते इदानीं एकमेकं, मृतशेषाश्चिराच्च दृष्ट्वा । परलोकगमनप्रत्यागता इव मन्यन्ते आत्मानम् ।)